पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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मुहम्मद के जीवन में उल्लेख है.
उनको जो कुछ मिलता दिन भर में, वे खाने—पीने के
बाद जो बचता सांझ को बांट देते, रात भिखारी
हो कर सो जाते। यह उनके जीवन भर की व्यवस्था
थी। जिस रात मरे, उनकी पत्नी ने यह सोच कर कि
मौत करीब आती है, चिकित्सक कहते हैं बचने का अब
कोई उपाय नहीं है, दवादारू की जरूरत पड़े, रात वैद्य
बुलाना पड़े, हकीम बुलाना पड़े—तो उसने पांच रुपये
बचा कर रख लिए, पांच दीनार बचा कर रख लिए।
बारह बजे रात मुहम्मद बड़े तड़पने लगे। उन्होंने अपनी
पत्नी को बुलाया और कहा कि देख, मुझे लगता है
कि मेरे जीवन भर का जो नियम था, वह टूटा जा
रहा है मरने का वक्त। मैंने कल के लिए कभी कोई
व्यवस्था नहीं की। और मुझे आज डर लग रहा है कि घर
में कुछ रुपये हैं। अगर हों, तो जल्दी उन्हें तू बांट दे, नहीं
तो परमात्मा के सामने आखिरी दिन लज्जित
होना पड़ेगा। वह मुझसे पूछेगा : तो फिर आखिरी
दिन तूने रुपये बचा लिए?
पत्नी तो घबड़ा गई कि इन्हें पता कैसे चला! उसने
जल्दी से पांच दीनार जो बचाए थे, निकाल कर दे
दिए कि क्षमा करें, मुझसे भूल हो गई! मैं तो यह सोच
कर कि रात—बेरात, आधी रात जरूरत पड़ सकती है,
फिर मैं कहां मांगूगी?
तो मुहम्मद ने कहा : पागल, जिसने हर बार दिया है,
हर दिन दिया है, इतने दिन तक दिया। कभी हम भूखे
मरे? कभी जरूरत पूरी नहीं हुई, ऐसा हुआ? जो सुबह
देता है, सांझ देता है, वह आधी रात न दे सकेगा? तू
जरा दरवाजे पर तो जा कर देख! वह पांच दीनार ले
कर गई, वहा एक भिखारी खड़ा है; वह कहता है, मुझे
पांच दीनार की जरूरत है। वे पांच दीनार उस
भिखारी को दे दिए गए।
मुहम्मद ने कहा. देख, लेने भी वही आ जाता है, देने
भी वही आ जाता है। हम नाहक चिंता खड़ी कर लेते
हैं। फिर चिंता में बंधते हैं, फिर बंधन से पीड़ित होते हैं
और चिल्लाते हैं। अब मैं निश्चित हुआ। अब मैं उसके
सामने सिर उठा कर खड़ा हो सकूंगा कि तू ही मेरा
एकमात्र भरोसा था। तेरे अलावा मैंने भरोसा और
किसी चीज में न रखा।
जिसका परमात्मा में भरोसा है, उसको फिर कोई
बंधन नहीं। लेकिन परमात्मा में हमारा भरोसा नहीं
है; भरोसा हमारा हजार और चीजों में है—इश्योरेंस
कंपनी में है, बैंक में है, स्त्री में है, पति में है, मित्रों में,
परिवार में, पिता में, पुत्र में, सरकार में, और हमारे
हजार भरोसे हैं!
नास्तिक भी जो अपने को कहता है, वह भी
नास्तिक नहीं है। बैंक का जहां तक सवाल है, वह भी
आस्तिक है, इंश्योरेंस कंपनी का जहां तक सवाल है,
वह भी आस्तिक है; सिर्फ भगवान के संबंध में वह
आस्तिक नहीं है।
आस्तिक का अर्थ है : जिसने अपना सारा भरोसा
परमात्मा में रखा, जिसने सारा भरोसा जीवन की
ऊर्जा में रखा, अस्तित्व में रखा।
जैसे ही रुपये बांट दिए, मुहम्मद हंसे और उन्होंने कहा :
अब शुभ हुआ, अब ठीक घड़ी आ गई, अब मैं निश्चित
जा सकता हूं। चादर उन्होंने अपने मुंह पर डाल ली और
कहते हैं, प्राण उड़ गए। पत्नी ने चादर उघाड़ी, वहां
तो लाश पड़ी थी, मुहम्मद जा चुके थे। जैसे वे पांच
दीनार अटकाए थे! जैसे उनके कारण वे बेचैन थे, बोझ
था, बंधन था!
हम कहते तो हैं कि हम स्वतंत्र होना चाहते हैं, लेकिन
स्वतंत्र होने के लिए हम जो व्यवस्था करते हैं वही हमें
बांध लेती है!
ओशो