#शिव ने ही #योग का आरम्भ किया। जिससे मनुष्य स्वस्थ रह सके। इसीलिए उन्हें #योगी_महादेव कहा जाता हैं।
योग संस्कृत की ‘‘#युज ’’ धातु से बना शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘जोड़’। योग का सही मायने में मर्म है आत्मा का मोक्ष के साथ जोड़। सच्चा योग वही है जो आत्मा को पुष्ट बनाए न कि शरीर को। सही अर्थों में योग का भावार्थ ही यह है कि वह आत्मा को परमात्मा से मिला दें। जब आत्मा का जोड़ परमात्मा के साथ हो जाता है तो योग सही मायने में सार्थक हो जाता है।
#वेदों_में_योग
यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति।। ( ऋक्संहिता, मंडल-1, सूक्त-18, मंत्र-7)
#अर्थात- योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है।
स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:।। ( ऋग्वेद 1-5-3 )
अर्थात वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे।
योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ई.पू. सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय की मोहरों और मूर्तियों में मिलता है। योग का प्रामाणिक ग्रंथ 'योगसूत्र' 200 ई.पू. योग पर लिखा गया पहला सुव्यवस्थित ग्रंथ है।
#हिंदू_धर्म_जैन_धर्म_और_बौद्ध_धर्म में योग का अलग-अलग तरीके से वर्गीकरण किया गया है।
#इन_सबका_मूल_वेद_और_उपनिषद_ही_रहा_है। योग हमारी एक अमूल्य विरासत और वैदिक धरोहर है।
योग कर्म भी है और धर्म भी है। योग से जहाँ मनुष्य का मन शांत और एकाग्रचित होता हैं वही शरीर स्वस्थ होता हैं। और यहाँ पर मैं एक बात स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगी कि एक स्वस्थ शरीर ही उत्तम विचारों को जन्म दे सकता है और एक उत्तम विचार ही स्वस्थ समाज और स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। आइये हम अपने स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज से एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में सहयोग करें।