क्या आप किसी ऐसे ग्रन्थ के विषय में सोच सकते हैं जिसे आप सीधे पढ़े तो कुछ और अर्थ निकले और अगर उल्टा पढ़ें तो कोई और अर्थ? ग्रन्थ को तो छोड़िये, ऐसा केवल एक श्लोक भी बनाना अत्यंत कठिन है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें एक नहीं बल्कि ३० ऐसे श्लोक हैं जिसे अगर आप सीधा पढ़ें तो रामकथा बनती है और उसी को अगर आप उल्टा पढ़ें तो कृष्णकथा। जी हाँ, ऐसा अद्भुत ग्रन्थ हमारे भारत में ही है।
उस ग्रन्थ का नाम है #राघवयादवीयम् जिसे १७वीं सदी में कांचीपुरम के महान विद्वान् कवि श्री वेंकटाध्वरि ने रचा था। ये ऐसी अद्भुत रचना है जिसमें ३० श्लोक इस निपुणता के साथ रचे गए हैं कि सीधा पढ़ने पर वो रामकथा और उल्टा पढ़ने पर कृष्णकथा बन जाते हैं। इस ग्रन्थ का नाम राघवयादवीयम् भी राघव (श्रीराम) और यादव (श्रीकृष्ण) के योग से बना है। इसे "अनुलोम-विलोम काव्य" भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ऐसा काव्य जिसके दो अर्थ हों।
वैसे तो इस ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं किन्तु अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण की कथाओं का अलग अलग वर्णन करें तो श्लोकों की कुल संख्या ६० हो जाती है। तो ३० श्लोकों को इस प्रकार से लिखना कि उनमे श्रीराम और श्रीकृष्ण का भाव पूर्ण रूप से रहे, अपने आप में ही एक आश्चर्य है। ये ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है। शब्दों का ऐसा अद्भुत ताना बाना केवल संस्कृत में ही बुना जा सकता है।
इस कथा के निर्माता श्री वेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गाँव अरसनीपलै में हुआ था। इन्होने कुल १४ रचनाएँ लिखी हैं जिनमे से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। ऐसी किवदंती है कि वेंकटाध्वरि नेत्रहीन थे किन्तु जैसे ही इन्होने लक्ष्मीसहस्त्रम् रचना समाप्त की, माँ लक्ष्मी की कृपा से इन्हे इनकी नेत्रों की ज्योति पुनः प्राप्त हो गयी।
वेंकटाध्वरि श्री वेदांत देशिक के शिष्य थे जिन्होंने इन्हे शास्त्रों की शिक्षा दी। वेदांत देशिक ने ही श्री रामनुजमाचार्य द्वारा स्थापित रामानुज सम्प्रदाय को वेडगलई गुट के द्वारा आगे बढ़ाया। उन्ही के ज्ञान को वेंकटाध्वरि ने अपनी रचनाओं के रूप में आगे बढ़ाया। राघवयादवीयम् में रामकथा बहुत हद तक वाल्मीकि रामायण से मिलती जुलती है किन्तु कृष्णकथा में थोड़ा सा भेद है जो श्लोकों के साथ ही समझ में आता है।
#अर्थात
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे।
#अर्थातः
मैं रुक्मणि तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
राघवयादवीयम” के ये ६० संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-
राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥
विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥