प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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अग्निहोत्र ऋषिप्रणित एवं वेदप्रतिपादित उपासना पद्धति है। वेदों में अग्नि उपासना के इस विधि का वर्णन मूल उपासना के स्वरूप में आया है। चारों वेद यज्ञ का गुणगान करते है और अग्निहोत्र को सबसे मूल व सर्व प्रथम यज्ञ माना गया है।
ऐसा भी माना जाता है कि वेदों का प्रगटीकरण अग्नि उपासना के स्पष्टिकरण हेतु ही हुआ है। जिस प्राचीन तत्वज्ञान से योग, आयुर्वेद का उगम हुआ उसी वैदिक साहित्य में अग्निहोत्र का उल्लेख मिलता है।

यह एक अत्यंत प्राचीन उपासना पद्धति है जिसका वर्णन उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत तथा गीता में भी पाया जाता है। मानवी संस्कृति का यज्ञों से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। यज्ञ में अग्नि और सूर्य की उपासना की जाती है।
विश्व की अनेक संस्कृतियो में यह मान्यता व यज्ञ सदृश्य प्रक्रिया पायी जाती है। उत्तर व दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, उत्तरी यूरोप, मध्य पूर्व के प्रदेश जैसे रोमन, इजिप्ट, ग्रीक, चीनी व जापानी संस्कृति में भी इस प्रकार की विधि का वर्णन पाया जा सकता है।
भारत की प्राचीन संस्कृति पर यज्ञ का बहुत गहरा प्रभाव दिखाई देता है। भारत के विविध प्रान्तों में कई युगों से यज्ञ किये जाने के संदर्भ पाए जाते है।

अग्निहोत्र मूल यज्ञ होने के कारण हर घर में किया जाता था ऐसे भी उल्लेख मिलते है। वैदिक संस्कृति का उगम ही अग्निहोत्र से है ऐसा माना जाता है।

सूर्योदय व सूर्यास्त को अग्निहोत्र के नित्य आचरण से व्यक्ति निसर्ग के प्राकृतिक तालचक्र से जुड़ जाता है। पृथ्वी पर उपस्थिति सर्व जीवसृष्टि का नियमन इस दिन रात के तालचक्र से जुड़ा हुआ है। पशु, पक्षी व वनस्पति इस प्रकृति से जुड़े है। हमरा मन व शरीर भी प्रकृति से सहज जुड़ा हुआ होता है। जब हम इस लय से जुड़ जाते है तो हमारे जीवन में भी ऊर्जा का अनुभव होता है।
वेद कहते है कि अग्निहोत्र के नित्य आचरण से सौमनस्य की प्राप्ति होती है। मन में उत्पन्न तान व तनाव नष्ट हो कर मन में प्रसन्न भाव उत्पन्न होने को सौमनस्य कहा गया है। साथ ही में अग्निहोत्र के नित्य आचरण से वातावरण पवित्र व प्रसन्न होकर उसका भी जीवसृष्टि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

आधुनिक काल में अग्निहोत्र विधि का पुनरुज्जीवन अक्कलकोट में स्तिथ शिवपुरी आश्रम से परम सदगुरु श्री गजानन महाराजजी ने १९४४ में किया है। परम सदगुरुजी की असीम कृपा से व कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम के माध्यम से पिछले ७५ वर्षों में अग्निहोत्र का प्रचार विश्व भर में किया जा चुका है।
प्रसन्न मन, शारीरिक ऊर्जा व आत्मिक शांति प्राप्त करने के इस प्रक्रिया को विश्व भर में हज़ारों लोगों ने स्वीकृत किया है।
अग्निहोत्र पर आधुनिक विज्ञान आधारित प्रयोग किये जाए, वेदोलखित परिणामों का अध्ययन किया जाए व इन परिणामों को विश्व के सामने रख कर अग्निहोत्र का जागतिक प्रचार किया जाए, इस हेतु से परम सदगुरुजी ने हमारे संस्था की स्थापना की है। विविध वैदिक शास्त्रों पर वैज्ञानिक प्रयोग कर केवल शास्त्रीय सिद्धान्तों का ही स्वीकार हो व अशास्त्रीय अंधश्रद्धात्मक बातों का त्याग किया जाए ऐसा मार्गदर्शन उन्होंने किया है।

इस मार्गदर्शन पर चल कर हज़ारों निष्ठावान अग्निहोत्र कार्यकर्ताओं ने पिछले ७५ वर्षों में ६५ से भी ज्यादा देशों में अग्निहोत्र का प्रचार किया है। साथ ही में भारत सहित अनेक देशों में अग्निहोत्र पर शास्त्रीय व वैज्ञानिक प्रयोग करने का प्रयास भी चल रहा है। पिछले कुछ दशकों में इस कार्य में कुछ सफलता प्राप्त हुई है। प्राप्त संसाधन व संबंधित वैज्ञानिक व विशेषज्ञों के सहाय से अग्निहोत्र पर विविध विषयों में प्रयोग किए गए है।
इन में मानवी आरोग्य, कृषि, शिक्षा, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों का मुख्यतः समावेष होता है। आज भारत के व अनेक देशों के कई विद्यापीठों में कई प्रयोग किये गए है और कुछ अभी भी चल रहे है।

प्राथमिक परीक्षणों में अत्यंत उत्साहवर्धक व सकारात्मक परिणाम मिले है। इन परिणामों के आधार पर अग्निहोत्र का शास्त्रीय अध्ययन करने में सफलता प्राप्त हुई है। इसके साथ ही विश्व भर में फैले अग्निहोत्र आचारणकर्ताओं के अनुभव भी हमने संकलित किये हैं।
इन दोनों को सम्मिलित कर के हम विश्व के सामने प्रस्तुत करते आये हैं।

कई प्रयोग किये जा चुके हैं और कई किए जा रहे है। पर हम ये जानते है कि यह प्रयास पर्याप्त नहीं है। और बहुत अभ्यास करने की आवश्यकता है। इस कार्य में हम अभी भी बहुत साध्य नही कर पाए है। अल्प संसाधन और पर्याप्त वैज्ञानिक मार्गदर्शन के अभाव से हम अध्ययन पूरा नहीं कर पा रहे है।
हम विविध क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों से निवेदन करते है कि हमे इस कार्य में आपके सहायता की आवश्यकता है। साथ ही में भारत सहित विविध देशों की सरकारों एवं गैर सरकारी संस्थाओं से भी निवेदन है कि इस कार्य में हमारी सहायता करें।
हमारी संस्था ने व हमारे कार्यकर्ताओं ने कभी भी अग्निहोत्र को लेकर कोई अशास्त्रीय व अवैज्ञानिक बात नहीं कि है। किंबहुना ऐसा करने वाले लोगों को हमारा विरोध रहा है। विश्व में फैला समस्त अग्निहोत्र परिवार केवल शास्त्राधारित व विज्ञानपूरक विचारों को ही ग्राह्य मानता है।
इसीलिये हमारे हर सामूहिक कार्यक्रम में हम अवश्य कसी ना किसी प्रयोग को करने का प्रयास करते है।
हम ये जानते है कि अग्निहोत्र पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रयोग किये जाने चाहिए क्योंकि यह हमारे निज अभ्यास का भी विषय है। जैसे आज योग व आयुर्वेद पर अध्ययन हो रहा है वैसे ही हमे भी अग्निहोत्र के विविध पहलुओं को जानने की उत्सुकता है।
इस का प्रयोजन अग्निहोत्र को अभ्यासित करने का है। अग्निहोत्र के आचरण का कारण तो हमारी श्रद्धा और भक्ति है। अग्निहोत्र मूलतः हमारी वेदोलखित उपासना पद्धति है। उसके आचरण की व प्रचार करने की अनुमति भारत सहित अनेक राष्ट्रों की व्यवस्था हमे देती है।
अग्निहोत्र आचरण व प्रचार हमारा अधिकार है और इसके लिए कीसी की अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है।
अग्निहोत्र प्रचार निःशुल्क किया जाता है। यह एक सेवा के स्वरूप में किया जाता है और विश्व में कहीं पर भी अग्निहोत्र प्रशिक्षण का कोई भी मूल्य नहीं लिया जाता है। विश्व भर में चल रहा अग्निहोत्र अभ्यास व प्रचार पूर्णतः स्वयंसेवक ही करते है।
आज भारत सहित, अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, साउथ ईस्ट एशिया, कई जगहों पर अग्निहोत्र के केंद्र कार्यरत है।
हमे विश्वास है कि अग्निहोत्र हमारे लिए हितकर है और उसके आचरण से हमारे जीवन में एक ऊर्जा प्राप्त होती है। हमे यह श्रद्धा है कि अग्निहोत्र के नित्य अनुष्ठान से हमारा व हमारे परिवार का जीवन आनंदी व परिपूर्ण हुआ है।