विश्व धरोहर स्थल खजुराहो के शिव मंदिर आठवी से बारहवी शताब्दी
अंग्रेजो ने पहली बार जब हमारे मन्दिरों को देखा तो हमारी निर्माण शैली की हंसी उडाई, कहा की इतने छोटे दरवाजे,कही कोई खिडकी नही ये तो बड़े अन-हाइजिनिक है हमारी चर्च देखो बडे बडे दरवाजे बड़ी बड़ी खिडकीयां वैल वैन्टीलेटड
बहुत से हिन्दु आत्म-ग्लानी से भर गये, सोचा सही बात है पर वैन्टीलेशन के लिए मन्दिरो को तोड़ा नही
समय बीतता गया विज्ञान विकसित होता गया ध्वनी क्या है ये किस तरह चलती है इस बात पर खोज बढ़ी
सौभाग्य से विज्ञान ने ही मन्दिरो के आर्कीटेक्चर की व्याख्या की
शब्द जब बोले जाते है तब उसकी ध्वनी तरंगें सीधी दिशा मे आगे बढती है और जहां भी टकराती है वहा से ९०° मुड़ जाती है इस तरह मन्दिरो मे बार-बार जाप से वहां ध्वनी तरंगों का एक स्वस्तिक निर्मित होता है जो साधको को आध्यात्मिक सफलता देने मे सहायक होता है
ध्वनी की तरंगे खंडित ना हो इसलिये ही मन्दिरो मे खिडकियां नही होती,और दरवाजा भी छोटा ही होता है
दूसरो के कहने और आधुनिकता के प्रभाव मे हमने अगर मन्दिरो को तोड़ कर उसमे बडी-बड़ी खिडकी और दरवाज़े लगा लिए होते तो ध्वनी की ये सूक्ष्मता हम खो देते
जय हो सनातन धर्म की जय