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सत्य जाने?
#देवों_का_प्रिय_सोमरस_वास्तव_में_है_क्या_?

सोमरस एक ऐसा पेय है, जिसका जिक्र देवताओं के वर्णन के साथ ही आता है। देवताओं से जुड़े हर ग्रंथ, कथा, संदर्भ में देवगणों को सोमरस का पान करते हुए बताया जाता है। इन समस्त वर्णनों में जिस तरह सोमरस का वर्णन किया जाता है, उससे अनुभव होता है कि यह अवश्य ही कोई बहुत ही स्वादिष्ट पेय है।

इसके साथ ही कई लोगों को यह भी लगता है कि जिस तरह आज मदिरा यानि शराब का सेवन बड़े ही शौक से किया जाता है, संभवतः यह भी उसी वर्ग का कोई मादक पदार्थ है, जिसके चमत्कारिक प्रभाव हैं।

क्या है सोमरस?
सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सोमरस मदिरा की तरह कोई मादक पदार्थ नहीं है। हमारे वेदों में सोमरस का विस्तृत विवरण मिलता है। विशेष रूप से ऋग्वेद में तो कई ऋचाएं विस्तार से सोमरस बनाने और पीने की विधि का वर्णन करती हैं। हमारे धर्मग्रंथों में मदिरा के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग हुआ है, जिसमें मद का अर्थ अहंकार या नशे से जुड़ा है। इससे ठीक अलग सोमरस के लिए सोमपान शब्द का उपयोग हुआ है, जहां सोम का अर्थ शीतल अमृत बताया गया है। मदिरा के निर्माण में जहां अन्न या फलों को कई दिन तक सड़ाया जाता है, वहीं सोमरस को बनाने के लिए सोम नाम के पौधे को पीसने, छानने के बाद दूध या दही मिलाकर लेने का वर्णन मिलता है। इसमें स्वादानुसार शहद या घी मिलाने का भी वर्णन मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि सोमरस मदिरा किसी भी स्थिति में नहीं है।

#कहां_और_कैसा_है_सोम_का_पौधा?
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर सोमरस बनाने में प्रयुक्त होने वाला प्रमुख पदार्थ यानि सोम का पौधा देखने में होता कैसा है और कहां पाया जाता है? मान्यता है कि सोम का पौधा पहाडि़यों पर पाया जाता है, राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के हिमाचल, विंध्याचल और मलय पर्वतों पर इसकी लताएं पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कई विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान में आज भी यह पौधा पाया जाता है, जिसमें पत्तियां नहीं होतीं और यह बादामी रंग का होता है। यह पौधा अति दुर्लभ है क्योंकि इसकी पहचान करने में सक्षम प्रजाति ने इसे सबसे छुपाकर रखा था। काल के साथ सोम के पौधे को पहचानने वाले अपनी गति को प्राप्त होते गए और इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई।

#कब_से_अस्तित्व_में_आया_सोमरस?
कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अश्विनी कुमारों ने बहुत लंबे समय तक ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। फलस्वरूप ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उन्हें सोमरस का अधिकारी बनाया, जो शक्तिवर्द्धक, आयुवर्द्धक और चिरयुवा रखने में सक्षम था। वराह पुराण के अनुसार सोमरस प्राप्ति का प्रमाण सोमरस का पान था। यह केवल देवताओं को दिया गया वरदान था। जो भी व्यक्ति देवत्व की प्राप्ति कर लेता था, उसे यज्ञ के बाद सोमरस का पान करने का अधिकार मिल जाता था।

#कहां_होता_है_उपयोग_सोमरस_का
सोमरस का उपयोग देवताओं के लिए विशेष रूप से किया जाता है इसीलिए यह देवताओं का प्रमुख पान है। इसीलिए यज्ञ के आयोजन में सोमरस का उपयोग विशेष रूप से किया जाता था। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ में सोमरस की आहूति देते थे और फिर प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते थे। ऋग्वेद के अनुसार सोमरस के गुण संजीवनी बूटी की तरह हैं। यह बलवर्द्धक पेय है जो व्यक्ति को चिर युवा रखता है। इसे पीने वाला अपराजेय हो जाता है। ऋग्वेद में इसे बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट पेय बताया गया है। साथ ही गुणों की तीव्रता के कारण इसे कम मात्रा में लिए जाने का भी विधान ज्ञात होता है।

#आध्यात्मिक_अर्थ_भी_है_सोमरस_का
कुछ विद्वान यह मानते हैं कि असल में सोमरस कोई भौतिक पदार्थ नहीं है। यह वास्तव में हमारे शरीर के अंदर ही पाया जाने वाला तत्व है, जो अखंड साधना के बाद निर्मल हुए शरीर में उत्पन्न होता है। इसकी प्राप्ति साधना के उच्च स्तर पर होती है इसीलिए केवल महान ऋषियों को ही इसकी प्राप्ति होती है।माना जा सकता है कि सोमरस भी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से निर्मित एक दुर्लभ पेय है, जिसमें शरीर को महाबलशाली बनाने के गुण हैं। सोम नामक दुर्लभ पौधे की सहज प्राप्ति संभव ना होने से ही संभवतः इसे देवताओं के लिए सीमित किया गया है।