प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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(विभीषण की आलोचना सच्चे धर्म की आलोचना हैं )

>>पिछले दिनों से देख रहा हूं जब से दोबारा रामायण का प्रसारण शुरू हुआ है कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से रावण का पक्ष ले रहे हैं और विभीषण को दोष दे रहे हैं कि उसने भाई द्रोह किया अपने धर्म का पालन नहीं किया

>> खैर मूल बात तो यह है कि वाल्मीकि रामायण में जब कैकसी विश्रवा ऋषि के पास पुत्र प्राप्ति के लिए जाती है तो विश्रवा जी रावण के जन्म से पहले कैकसी से कहते हैं कि तू अशुभ बेला में आई है इसलिए तेरे रावण इत्यादि नीच राक्षस पुत्र पैदा होंगे। तो कैकसी इस बात से बहुत दुखी हुई और उसने उनसे धर्मात्मा श्रेष्ठ पुत्र देने की प्रार्थना की तो विश्रवा जी ने कहा, "ठीक है! तेरा अंतिम पुत्र विभीषण होगा जो बहुत धर्मात्मा पैदा होगा, वही श्रेष्ठ पुत्र मेरी कुल परम्परा को बढ़ाएगा।"

>> जब विश्रवा जी स्पष्ट कह दिए कि विभीषण उनकी कुल परम्परा बढ़ाएगा और वही धर्मात्मा होगा। विभीषण को कनिष्ठ होते हुए भी स्वयं पिता कुल परम्परा बढाने का अधिकार प्रदान किए हैं, और विभीषण पर मुहावरे बनाकर विभीषण जी को गाली देते हैं, जबकि विभीषण जी ने कठिन तपस्या से यह वरदान मांगा था कि, "मैं कभी भी धर्म का अतिक्रमण न करूँ।" तो फिर श्रीराम का साथ देना अधर्म कैसे हुआ? वाल्मीकि रामायण में कुम्भकर्ण ने स्वयं अपने मुँह से विभीषण को कुलभूषण कहा है।

>> विभीषण को अगर दोष दिया जाने लगा फिर प्रह्लाद भी उसी श्रेणी में आ जाएंगे कि उन्होंने पिता के साथ द्रोह किया है

>> चलिए इस बात को भी अगर आधार मान लें के विभीषण ने अपने भाई के साथ द्रोह किया है और अपने धर्म का पालन नहीं किया तो यह केवल कुतर्क माना जाएगा

>> व्यक्तिगत स्तर के सारे धर्म चाहे वह भाई के प्रति धर्म हो चाहे पुत्र के प्रति धर्म हैं या फिर किसी भी प्रकार का कर्मकांड हो यह सारे एक साधन है साध्य नहीं धर्म साधन होता है ईश्वर साध्य हैं साधन कभी साध्य से ऊपर नहीं जा सकता

>> भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कर्ण पर वार करने को तब कहा था जब कर्ण का के रथ का पहिया निकल चुका था और अपने रथ को सही कर रहा था तब अर्जुन ने कर्ण पर वार किया था सामान्य दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह धर्म युक्त नहीं कहा जाएगा लेकिन फिर वही बात आ जाती है धर्म साधन है ईश्वर साध्य हैं वहां पर ईश्वर साक्षात बोल रहे हैं

>> साधन की शुद्धता से अधिक साध्य की शुद्धता महत्वपूर्ण होती है कर्ण के अलावा भीष्म पितामह को शिखंडी के पीछे छुप कर और द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा मारा गया यह कह कर भी मारा गया था लेकिन यह गलत नहीं कहा जाएगा क्योंकि वह धर्म की तरफ नहीं लड़ रहे थे साधन तो सुध नहीं था लेकिन साध्य शुद्ध था क्योंकि पांडव धर्म के तरफ से लड़ रहे थे परिणामतं अंत में धर्म की जीत होती है पांडव के रूप में

>> अर्थात यह तर्क जो दिया जा रहा है कि विभीषण ने अपने धर्म का पालन नहीं किया यह बस लो लेवल का कुतर्क है वास्तव में विभीषण ने अपने धर्म का ही सच्चा पालन किया है

>> अगर रिश्ते को भी आधार बना लें तो रावण से तो एक जन्म का रिश्ता था नारायण से तो कई जन्मों का रिश्ता चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा वहां पर भी यह बात कट जाती

> >इसके अलावा विभीषण भगवान विष्णु के १० परम भक्तों में शुमार है जिसमें प्रह्लाद, ध्रुव ,अर्जुन सुदामा जैसे लोग है और इनके अलावा इस श्रेणी की सार्थकता ऐसे समझी जा सकती है किसी श्रेणी में साक्षात भगवान शिव के अंश हनुमान जी भी हैं

>> इतना तो कॉमन सेंस होना चाहिए कि ईश्वर का साथ देना क्या कभी अधर्म हो सकता है ईश्वर से ही धर्म उत्पन्न होता है ,ईश्वर से धर्म है ,धर्म से ईश्वर नहीं सूर्य की किरणों का अस्तित्व सूर्य से है ना कि सूर्य का अस्तित्व किरणों से इसलिए इस बात को तो हमेशा समझना चाहिए कि ईश्वर का साथ कभी अधर्म नहीं हो सकता तो क्या विभीषण द्वारा भगवान राम का साथ देना कभी अधर्म हो सकता है

>> अगली बार से विभीषण को दोष देने से पहले १० बार सोचिएगा कि आप भगवान विष्णु के १० परम भक्तों में से एक की आलोचना कर रहे हैं

।। जय श्री राम ।।