प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म ३४० ई॰पु॰, राज ३२१[२]-२९७ ई॰पु॰[३]) में भारत के महानतम सम्राट थे। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे। भारत राष्ट्र निर्माण मौर्य गणराज्य ( चन्द्रगुप्त मौर्य )
सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया ३२१ ई.पू. निर्धारित की जाती है। उन्होंने लगभग २४ वर्ष तक शासन किया और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्राय: २९७ ई.पू. में हुआ।


विष्णु पुराण ,मुद्राराक्षस व अन्य ब्राह्मण ग्रंथो के अनुसार चन्द्रगुप्त, महापद्मनन्द एवं मुरा के पुत्र है.

मेगस्थनीज ने चार साल तक चन्द्रगुप्त की सभा में एक यूनानी राजदूत के रूप में सेवाएँ दी। ग्रीक और लैटिन लेखों में , चंद्रगुप्त को क्रमशः सैंड्रोकोट्स और एंडोकॉटस के नाम से जाना जाता है।

चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजा हैं। चन्द्रगुप्त के सिहासन संभालने से पहले, सिकंदर ने उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था, और ३२४ ईसा पूर्व में उसकी सेना में विद्रोह की वजह से आगे का प्रचार छोड़ दिया, जिससे भारत-ग्रीक और स्थानीय शासकों द्वारा शासित भारतीय उपमहाद्वीप वाले क्षेत्रों की विरासत सीधे तौर पर चन्द्रगुप्त ने संभाली। चंद्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिसे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता है,जो चन्द्र गुप्त के प्रधानमंत्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धांतों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया

और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।[४]

चंद्रगुप्त मौर्य नंदवंशी सम्राट महापद्मनंद की दूसरी पत्नी मुरा के पुत्र थे।महापद्म नंद की प्रथम यदुवंशी रानी से उत्प्न्न पुत्र जो नव नंद कहलाये उनका राजकुमार चन्द्रगुप्त से उत्तराधिकार का विवाद था। बौद्ध साहित्य में मौर्य क्षत्रिय बताए गए हैं। धनानंद से उत्तराधिकार विवाद के चलते राजकुमार चन्द्रगुप्त का जीवन मयूरपोषकों, चरवाहों तथा लुब्धकों के संपर्क में व्यतीत हुआ। परंपरा के अनुसार वह बचपन में अत्यंत तीक्ष्णबुद्धि था, एवं समवयस्क बालकों का सम्राट् बनकर उनपर शासन करता था। ऐसे ही किसी अवसर पर चाणक्य की दृष्टि उसपर पड़ी।चाणक्य और चन्द्रगुप्त दोनों का शत्रु एक ही था,फलत: चाणक्य राजकुमार चंद्रगुप्त को तक्षशिला गए जहाँ उन्हें राजोचित शिक्षा दी गई। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के अनुसार सांद्रोकात्तस (चंद्रगुप्त) साधारणजन्मा था।

सिकंदर के आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत धनानंद द्वारा शासित था। चाणक्य तथा चंद्रगुप्त ने नंद वंश को उच्छिन्न करने का निश्चय किया अपनी उद्देश्यसिद्धि के निमित्त चाणक्य और चंद्रगुप्त ने एक विशाल विजयवाहिनी का प्रबंध किया ब्राह्मण ग्रंथों में नंदोन्मूलन का श्रेय चाणक्य को दिया गया है। अर्थशास्त्र में कहा है कि सैनिकों की भरती चोरों, म्लेच्छों, आटविकों तथा शस्त्रोपजीवी श्रेणियों से करनी चाहिए। मुद्राराक्षस से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने हिमालय प्रदेश के राजा पर्वतक से संधि की। चंद्रगुप्त की सेना में शक, यवन, किरात, कंबोज, पारसीक तथा वह्लीक भी रहे होंगे। प्लूटार्क के अनुसार सांद्रोकोत्तस ने संपूर्ण भारत को ६,००,००० सैनिकों की विशाल वाहिनी द्वारा जीतकर अपने अधीन कर लिया। जस्टिन के मत से भारत चंद्रगुप्त के अधिकार में था।

चंद्रगुप्त ने सर्वप्रथम अपनी स्थिति पंजाब में सदृढ़ की। उसका यवनों विरुद्ध स्वातंत्रय युद्ध संभवत: सिकंदर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद आरंभ हो गया था। जस्टिन के अनुसार सिकंदर की मृत्यु के उपरांत भारत ने सांद्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बंधन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला। चंद्रगुप्त ने यवनों के विरुद्ध अभियन लगभग ३२३ ई.पू. में आरंभ किया होगा, किंतु उन्हें इस अभियान में पूर्ण सफलता ३१७ ई.पू. या उसके बाद मिली होगी, क्योंकि इसी वर्ष पश्चिम पंजाब के शासक क्षत्रप यूदेमस (Eudemus) ने अपनी सेनाओं सहित, भारत छोड़ा। चंद्रगुप्त के यवनयुद्ध के बारे में विस्तारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिंध के प्रांत मिल गए।

चंद्रगुप्त मौर्य का महत्वपूर्ण युद्ध धनानंद के साथ उत्तराधिकार के लिए हुआ। जस्टिन एवं प्लूटार्क के वृत्तों में स्पष्ट है कि सिकंदर के भारत अभियान के समय चंद्रगुप्त ने उसे नंदों के विरुद्ध युद्ध के लिये भड़काया था, किंतु किशोर चंद्रगुप्त के व्यवहार ने यवनविजेता को क्रुद्ध कर दिया। भारतीय साहित्यिक परंपराओं से लगता है कि चंद्रगुप्त और चाणक्य के प्रति भी नंदराजा अत्यंत असहिष्णु रह चुके थे। महावंश टीका के एक उल्लेख से लगता है कि चंद्रगुप्त ने आरंभ में नंदसाम्राज्य के मध्य भाग पर आक्रमण किया, किंतु उन्हें शीघ्र ही अपनी त्रुटि का पता चल गया और नए आक्रमण सीमांत प्रदेशों से आरंभ हुए। अंतत: उन्होंने पाटलिपुत्र घेर लिया और धनानंद को मार डाला।

इसके बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में भी किया। मामुलनार नामक प्राचीन तमिल लेखक ने तिनेवेल्लि जिले की पोदियिल पहाड़ियों तक हुए मौर्य आक्रमणों का उल्लेख किया है। इसकी पुष्टि अन्य प्राचीन तमिल लेखकों एवं ग्रंथों से होती है। आक्रामक सेना में युद्धप्रिय कोशर लोग सम्मिलित थे। आक्रामक कोंकण से एलिलमलै पहाड़ियों से होते हुए कोंगु (कोयंबटूर) जिले में आए और यहाँ से पोदियिल पहाड़ियों तक पहुँचे। दुर्भाग्यवश उपर्युक्त उल्लेखों में इस मौर्यवाहिनी के नायक का नाम प्राप्त नहीं होता। किंतु, 'वंब मोरियर' से प्रथम मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त का ही अनुमान अधिक संगत लगता है।

मैसूर से उपलब्ध कुछ अभिलेखों से चंद्रगुप्त द्वारा शिकारपुर तालुक के अंतर्गत नागरखंड की रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। उक्त अभिलेख १४वीं शताब्दी का है किंतु ग्रीक, तमिल लेखकों आदि के सक्ष्य के आधार पर इसकी ऐतिहासिकता एकदम अस्वीकृत नहीं की जा सकती।

चंद्रगुप्त ने सौराष्ट्र की विजय भी की थी। महाक्षत्रप रुद्रदामन्‌ के जूनागढ़ अभिलेख से प्रमाणित है कि चंद्रगुप्त के राष्ट्रीय, वैश्य पुष्यगुप्त यहाँ के राज्यपाल थे।

चद्रंगुप्त का अंतिम युद्ध सिकंदर के पूर्वसेनापति तथा उनके समकालीन सीरिया के ग्रीक सम्राट् सेल्यूकस के साथ हुआ। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के उल्लेखों से प्रमाणित होता है कि सिकंदर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस को उसके स्वामी के सुविस्तृत साम्राज्य का पूर्वी भाग उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ। सेल्यूकस, सिकंदर की भारतीय विजय पूरी करने के लिये आगे बढ़ा, किंतु भारत की राजनीतिक स्थिति अब तक परिवर्तित हो चुकी थी। लगभग सारा क्षेत्र एक शक्तिशाली शासक के नेतृत्व में था। सेल्यूकस ३०५ ई.पू. के लगभग सिंधु के किनारे आ उपस्थित हुआ। ग्रीक लेखक इस युद्ध का ब्योरेवार वर्णन नहीं करते। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रगुप्त की शक्ति के संमुख सेल्यूकस को झुकना पड़ा। फलत: सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को विवाह में एक यवनकुमारी तथा एरिया (हिरात), एराकोसिया (कंदहार), परोपनिसदाइ (काबुल) और गेद्रोसिय (बलूचिस्तान) के प्रांत देकर संधि क्रय की। इसके बदले चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को ५०० हाथी भेंट किए। उपरिलिखित प्रांतों का चंद्रगुप्त मौर्य एवं उसके उततराधिकारियों के शासनांतर्गत होना, कंदहार से प्राप्त अशोक के द्विभाषी लेख से सिद्ध हो गया है। इस प्रकार स्थापित हुए मैत्री संबंध को स्थायित्व प्रदान करने की दृष्टि से सेल्यूकस न मेगस्थनीज नाम का एक दूत चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा। यह वृत्तांत इस बात का प्रमाण है कि चंद्रगुप्त का प्राय: संपूर्ण राजयकाल युद्धों द्वारा साम्राज्यविस्तार करने में बीता होगा।