प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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#राजा_दशरथ_पुत्र_प्राप्ति_यज्ञ_से_या_औषधि_से

राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ एवं पुत्रों की प्राप्ति:-

श्रीराम चारो भाई राजा दशरथ के ही औरस(वीर्य से उत्पन्न) संतान थे।* वाल्मीकि रामायण में पूरा वर्णन इस प्रकार है:-

तस्य चैवं प्रभावस्य धर्मज्ञस्य महात्मनः।
सुतार्थं तप्यमानस्य नासीद्वशकरः सुतः।।
(बालकांड ८:१)

अर्थ:- ‘ऐसे प्रभावशाली,धर्मज्ञ,महात्मा के पुत्र के लिये पीड़ित महाराज दशरथ के लिये वंश को चलाने वाला कोई पुत्र नहीं था।’ तब राजा दशरथ ने अपनी प्राणप्रिया पत्नियों से कहा कि ‘मैं पुत्र-प्राप्ति के लिये यज्ञ करंगा।तुम यज्ञ की दीक्षा लो।इस प्रकार ऋष्यश्रृंग ऋषि से दशरथ मिलते हैं तथा सात-आठ दिन बाद रोमपाद जी ( ऋष्यश्रृंग के श्वसुर)से यज्ञ के विषय में वार्तालाप करते हैं। ऋष्यश्रृंग मुनि अपनी पत्नी शांता के साथ अयोध्या पधारते हैं।उनके आगमन के कुछ समय बाद वसंत ऋतु का आगमन हुआ।तब महाराज को यज्ञ करने की इच्छा हुई।
वे बोले:-

कुलस्य वर्धनं त्वं तु कर्तुमर्हसि सुव्रत।
(बालकांड १४:५८)

अर्थात् ‘हे सुव्रत!आप मेरे कुल की वृद्धि के लिये उपाय कीजिये।तब मेधावी ऋष्यश्रृंग ऋषि ने,जो वेदों के ज्ञाता थे,ने थोड़ी देर ध्यान लगाकर अपने भावी कर्तव्यों का निश्चय किया और महाराज दशरथ से बोले:-

इष्टि ते$बं करिष्यामि पुत्रीयां पुत्रकारणात्।
अथर्वशिरसि प्रोक्तैर्मंत्रैः सिद्धां विधानतः।।
(बाल*१५:१२)
‘महाराज!आपको पुत्र प्राप्ति कराने हेतु मैं अथर्ववेद के मंत्रों से *पुत्रेष्टि* नामक यज्ञ करूंगा।वेदोक्त विधि से अनुष्ठान करने से यह यज्ञ अवश्य सफल होगा।’

[अथर्ववेद के निम्न मंत्र में पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन है

शमीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसवनंकृतम्।
तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत् स्त्रीष्वाभरामसि।।
(६:११:१)
अर्थ:- ’शमी(छौंकड़) वृक्ष पर जो पीपल पर उगता है वह पुत्र उत्पन्न करने का साधन है।यह पुत्र-प्राप्ति का उत्तम साधन है।यह स्त्रियों को देते हैं। ] उसके बाद ऋषि ने विधिवत् पुत्रेष्टि यज्ञ प्रारंभ किया तथा विधिवत् मंत्र पढ़कर आहुति देना शुरू किया।थोड़ी देर बाद ऋषि ने पुत्रोत्पादक रूप गुणयुक्त खीर देकर राजा से कहा :-

अथर्ववेद में पुत्र प्राप्ति का औषधी बताया गया है।
उस औषधी को खीर में मिला कर रानियो को दिया गया था।

*इदं तु नृपशार्दूल पायसं देवनिर्मितं।
प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम्।।

(बाल* १६:१९) *’नृपश्रेष्ठ!यह देवताओं(=विद्वानों)द्वारा निर्मित खीर है।यग पुत्रोत्पादक, प्रशस्त तथा आरोग्यवर्धक है।इसे ग्रहण कर रानियों को खिलाइये।आपको निस्संदेह पुत्रों की प्राप्ति होगी।’ तब राजा ने खीर पाकर प्रसन्नता प्रकट की,मानो निर्धन को धन मिल गया।तब खीर लेकर वे रनिवासमें गये तथा रानियों को पृथक-पृथक खीर बाँटी।महाराज दशरथ की सुंदर स्त्रियों ने खीर खाकर स्वयं को भाग्यवती माना।

*ततस्तु ताः प्राश्य तमुत्तमस्त्रियो महीपतेरुत्तमपायसं पृथक्।हुताशनादित्यसमानतेजसो$चिरेण गर्भान्प्रतिपेदिरे तदा।।*
( बाल* १६:३१)

तदनंतर तीनों उत्तमांगनाओं ने महाराज दशरथ द्वारा पृथक-पृथक प्रदत्त खीर खाकर अग्नि और सूर्य के समान तेजवाले गर्भों को धारण किया।’ यज्ञ समाप्ति पश्चात् राजा लोग अपने-अपने देशों को लौटे। ऋष्यश्रृंग भी अपनी पत्नी शांता सहित महाराज से विदा लेकर अपने स्थान को चले।

तते यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावभिके तिथौ।।

‘यज्ञ-समाप्ति के पश्चात् छः ऋतुयें व्यतीत होने पर बारहवें मास में चैत्र की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच में कौसल्या जी ने श्रीराम को जन्म दिया।फिर कैकेयी न पुष्य नक्षत्र में भरत को,सुमित्रा मे अश्लेषा नक्षत्र और कर्कलग्न में सूर्योदय होने पर लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।’