प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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अरब में सर्वोच्च, महान शिव का साम्राज्य,
मुसलमानों स्वीकारो सत्य, जानो यह राज
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शिव की परम ऊर्जा को नमन!! पूरे लेख को ध्यान से पढि़ए... शिव के बारे में दक्षिणी अरब साम्राज्य के इतिहास को देखिए और देवाधिदेव शिव के माहात्म्य का अर्थ समझिए।
सुभान अल्लाह वा बिहामदीही= ओम नम: शिवाय
इस्लाम से पूर्व अरब में बेबीलोनियन देवी-देवताओं के साथ ही शैववाद का प्रबल प्रभाव था। अरबियों ने जब धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार कर लिया तो फारस से नमाज का कर्मकांड अपना लिया (अरबी इसे सलात कहते हैं) और सजदा (शीघ्र ही इस पर विस्तार से लिखूंगी) व शाम की इबादत ईशा। ईशा सदा ही शिव का आह्वान होता है। शिव को ईशा भी कहते हैं। जो यह नहीं समझते, वे अज्ञानता में जी रहे हैं, पर वास्तविकता यह है कि वे सृजन की उच्चतम शक्ति की ही शिव पूजा करते हैं।

जो शिव के मंदिर या किसी रूप में उसके अवशेष को नष्ट करते हैं अथवा क्षतिग्रस्त करते हैं, वे दंड भोगते हैं। ऐसे लोगों के पूरे समुदाय का समूल नाश हो जाता है अथवा वे सैकड़ों वर्षों तक निरंतर कष्ट भोगते रहते हैं। शिव के विरुद्ध कभी कभी कोई गलत शब्द नहीं बोलें, अन्यथा आपकी कई पीढिय़ां इसका मूल्य चुकाते हुए सजा भोगेंगी। अरब के देशों में प्राचीन काल के शिव मंदिरों को तोड़ा गया है और यही कारण है कि इन मुस्लिम देशों में इतना अधिक युद्ध व संघर्ष जैसी स्थिति है। ऐतिहासिक रूप से यह ज्ञात है कि शिव के किसी प्रतीक के विरुद्ध गलत शब्द का प्रयोग करने अथवा अपमान करने वाले व्यक्ति सामान्यत: कड़ा दंड प्राप्त करते हैं और लंबे समय तक दु:ख भोगते हैं।

प्राचीन अरब अर्व अथवा अश्व की भूमि के रूप में जानी जाती थी और फारस के प्राचीन लोग इसे घोड़ों की भूमि कहते थे, क्योंकि संस्कृत व ईरान की अवेस्ता भाषा में अर्व अथवा अश्व का अर्थ घोड़ा होता है। प्राचीन अरब में शिव को समर्पित १३ प्रमुख मंदिर थे। इनमें से प्रमुख मंदिर वहां था जहां आज का काबा स्थित है। काबा वही स्थान है जहां प्राचीन बेबीलोनियन व यूनानी देवताओं की मूर्तियां थीं।

प्राचीन काल में पुराने बेबीलोनिया, प्राचीन सुमेरिया, मिस्र और इथोपिया जैसे अफ्रीका के भागों में तमिल बोलने वाले लोग रहते थे। ये लोग उस परम तत्व शिव की पूजा करते थे, जो सृजन करता है, संरक्षण करता है और ब्रह्मांड को रूपांतरित करता है। लबी बैनय, अखताब-बिन-तुफ्रा एवं जरहब बिनताई जैसे अरब के प्राचीन कवियों ने पांच स्वर्ण पत्रों पर कविता के रूप में इसे उकेरा है। जब इन स्वर्ण पत्रों पर उकेरी गई कविताओं का पता चला तो हारुन-अल-राशिद ने अबू आमिर को आदेश दिया कि इन कवियों के पहले की सभी रचनाओं का संकलन करें। इन कवियों की रचनाओं में से एक प्रख्यात अरब कवि जरहम बिनताई द्वारा सम्राट विक्रमादित्य की स्तुति में लिखी गई एक कविता है। बिनताई पैगम्बर मुहम्मद के १६५ वर्ष पूर्व जीवित थे। मक्का में प्रति तीन वर्ष पर होने वाले अरब प्रायद्वीपीय सम्मेलन में बिनताई को सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार मिला था।

बिनताई की तीन सर्वश्रेष्ठ कविताएं काबा के मंदिर के भीतर स्वर्ण पत्रों पर उकेर कर टांगी गई थीं। इन कविताओं में से एक में सम्पूर्ण अरब में सम्राट विक्रमादित्य के पुरखों व उनके राज के प्रति अगाध आभार प्रकट किया गया है। मैं आगे उन कविताओं को विस्तार से बताऊंगी, जो छिपे हुए एवं दबाकर रखे गए सत्य को उजागर करते हैं।

एक अरबी कविता अभी भी उपलब्ध है, जो पैगम्बर के चाचा को समर्पित है और इस कविता का शीर्षक है ‘पुण्यात्मा’। किंतु इस व्यक्ति को इसलिए जाहिल कहा गया, क्योंकि इसने अपने भतीजे के मजहब को स्वीकार करने से मना कर दिया था। इस व्यक्ति यानी पैगम्बर के चाचा को कुरैश कबीले (खुरैश अथवा सौरेश के वंशज) के अन्य व्यक्तियों के साथ ही मार डाला गया था। यह अरबी कविता महादेव (भगवान शिव) की स्तुति है। इस कविता को भी मैं किसी दिन वर्णन सहित लिखूंगी।

इस्लाम पूर्व अरब के कवि बिनताई की कविता, जो कि चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य को समर्पित है, बड़ा प्रमाण है कि वह सम्राट बिक्रमादित्य ही थे, जिनके राज्य का विस्तार अरब प्रायद्वीप तक था और इन्होंने अरब प्रायद्वीप को भारतीय साम्राज्य का भाग बनाया था। यह बताता है कि क्यों भारत से पश्चिमी देशों की ओर बढऩे पर संस्कृत नाम जैसे गंधार व खुरैसान (अब अफगानिस्तान), परसा (ईरान) आर्वस्थान, बाहलिका (बाल्ख जिसे अब तजाकिस्तान के नाम से जाना जाता है) आदि पाए जाते हैं।
उच्चतम स्तर पर शिव निराकार, असीम, सर्वोपरि एवं अपरिवर्तनीय सम्पूर्ण ब्राह्मण हैं तथा ब्रह्मांड के प्राथमिक आत्मन् (आत्मा, स्व) हैं। लोक शब्द व्युत्पत्ति में शिव ‘शि’ है, जिसका अर्थ है ‘‘सब में व्याप्त, सर्वव्यापी’’ तथा व अर्थात ‘कृपास्वरूप’ से मिलकर बना है। अतीत में बहुत पहले, इस शब्द का उद्विकास वैदिक रूद्र-शिव से होते हुए महाकाव्यों व पुराणों में शिव की संज्ञा तक हुआ। यह उस शुभ देव के रूप में जाना गया, जो सृजनकर्ता, पालनहार एवं संहारक है।

शिव पुरुष व स्त्री की ऊर्जा को धारण करने वाला है तथा वह परम सूक्ष्म यथार्थ है जो तकनीकी रूप से इस जगत में ऊर्जा का संचार करता है। आप इसे किसी भी नाम से पुकारिए, किसी भी रूप या आकार से मानिए अथवा इसे परम सत्य कहिए, पर वास्तविकता में यह सर्वव्यापी व अपरिवर्तनीय है, चाहे कोई इसे जाने या न जाने अथवा कोई इस पर विश्वास करे या न करे।

तमिल शब्द शिवप्पू का अर्थ है ‘लाल’। इसमें ध्यान देने की बात यह है कि शिव को सूर्य-सिवन से जोड़ा गया है), ‘लाल रंग वाला’ और यह भी कि रूद्र को भी बभू्र- ऋज्वेद में लाल कहा जाता है। विष्णु सहस्त्रनाम में शिव की व्याख्या विभिन्न अर्थों में की गई है: ‘परम शुद्ध व निर्दोष’ तथा ‘वह जो प्रकृति के तीनों गुणों (सत्व, रज व तम) से प्रभावित नहीं होता।’ विभिन्न क्षेत्रों व विभिन्न संस्कृतियों में शिव विभिन्न नामों से जाने जाते हैं। शिव के भी सहस्त्र अर्थात दस हजार नाम हैं। कुछ पांडुलिपियों में कब्बाला-ईश्वर का संदर्भ है। भविष्य पुराण में भी मदीनापुर (मूलत: यह मध्य शब्द था) का उल्लेख तीर्थ के रूप में है।

हेफ्तलाइट साम्राज्य व कुषाण साम्राज्य के माध्यम से मध्य एशिया में शिव की पूजा लोकप्रिय हुई। शैववाद सोगदिया व यूतिअन साम्राज्य में भी शैववाद लोकप्रिय था और जरसशान नदी पर स्थित पेंजीकेंत के भित्ति चित्रों में इसका प्रमाण मिलता है। इंडोनेशिया में शिव बत्रा गुरु के रूप में पूजे जाते हैं। जापान के सात सौभाज्य के देवों में से एक दैकोकुतन की उत्पत्ति भी शिव से हुई मानी जाती है। यह नाम जापान में महाकाल के समकक्ष नाम है, जो शिव का बौद्ध नाम है। शिव के नृत्य रूप का एक नाम नटराज है, जो महाकाल अर्थात काल से परे अपरिवर्तनीय काल है।

शिव का प्राचीन साम्राज्य अथवा शीबा
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मुस्लिम, यहूदी व बाइबिल के कथन केवल सबा की भूमि का उल्लेख करते हैं, पर वास्तव में यह शीबा अथवा शीवा था, जिसका उच्चारण शीबा या सबा किया गया।
सबा, ‘दक्षिणी अरबी साम्राज्यों के प्रमुख व प्राचीनतम साम्राज्य थे।’ केनेथ किचन इस साम्राज्य की तिथि ईसा पूर्व १२०० से २७५ बताते हैं और इसकी राजधानी मैरिब थी। इस साम्राज्य का पतन तब हुआ जब कई यमनी राजवंशों ने राजगद्दी के लिए गृह युद्ध छेड़ दिया। इस साम्राज्य के पतन के पश्चात हिम्याराइत साम्राज्य आया।
शीबा साम्राज्य के बारे में बाइबिल में अंकित तथ्यों का आधार दक्षिणी अरब में प्राचीन सबा सभ्यता है।

बाइबिल में उल्लिखित शीबा की भूमि के बारे में सर्वाधिक प्रसिद्ध शीबा की महारानी की कहानी है, जो यह कहती है कि महारानी ढेर सारे रत्न, मसाले और स्वर्ण लेकर कारवां के साथ जेरूसलम गईं थीं और राजा सोलोमन से प्रश्र किए थे। कुरान में शीबा का उल्लेख सूरा अन-नमल के एक भाग में हुआ है, जो शीबा की महारानी के जेरूसलम की यात्रा के बारे में बताता है। कुरान इस प्राचीन समुदाय के साथ उन दूसरे समुदायों का भी उल्लेख करता है, जो ईश्वर द्वारा नष्ट कर दिए गए थे। इस कहानी में कुरान बाइबिल व अन्य यहूदी स्रोतों का सहारा लेता है।

दक्षिणी अरेबिया में सेहदिक भाषा थी जो सैबियन (शिवयन), मधाबिक अथवा माधबी के रूप में जानी जाने वाली मिनैइक थी और अब ये भाषा लुप्त हो चुकी है।
भारत के लोग अपने गौरवशाली व विशाल प्राचीन अतीत को लेकर पूरी तरह उपेक्षा का भाव अपनाए हुए हैं। वे उपभोक्तावाद के मूर्खतापूर्ण विश्व में जी रहे हैं। शरीर से परे उनका किसी और चीज से संबंध नहीं रह गया है। मुझे भारत के लोगों को इस अवस्था में देखकर दया आती है। ये लोग शिव का वास्तविक अर्थ या इसके प्रतीक को नहीं जानते हैं। ये लोग इतने मूर्ख हो चुके हैं कि धार्मिक अथवा आध्यात्मिक भाव समझे बिना पत्थर के प्रतीक पर दूध चढ़ाने मात्र को ही शिव की पूजा मान बैठे हैं। ये लोग प्रतीकात्मकता के अर्थों को समझे बिना अंधों की तरह कर्मकांड करने लगे हैं।

शिव का ध्यान कीजिए, शिव के प्रति श्रद्धा रखिए, ताकि जीवन में प्रेम, समर्पण एवं शांति प्राप्त हो सके। यदि कोई शिव मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में हो तो उसका जीर्णोद्धार कराइए और फिर देखिए कि वह क्षेत्र किस तरह तेजी से फलेगा-फूलेगा।

चाहे हम विश्वास करें अथवा अपने विवेक को मार दें, पर सत्य यही है कि वही ऊर्जा विभिन्न स्वरूपों, आकारों में दिखेगी। भले ही हम नहीं समझ पाएं, क्योंकि ऊर्जा की थाह लेने की क्षमता मानव मस्तिष्क में नहीं होती है!!
ओम नम: शिवाय!!