हमारी इतिहास की किताबें मुगल काल से शुरू होकर अंग्रेजों पर खत्म हो जाती हैं । लेकिन हमारे पूर्वज अतीत के बर्बर आक्रांताओं पर हमारे योद्धाओं के शानदार जीत के सबूत के तौर पर इन विरासतों को छोड़ गए ।
अगर यह विजय स्तंभ ना होता तो हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने हमें यह विश्वास दिला दिया होता कि राणा कुम्भा नाम का कोई राजा था ही नहीं जिसने महमूद खिलजी को रौंद दिया था ।