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तिरुपति बालाजी मंदिर के खुले कपाट, कैसे होंगे दर्शन जानिए यहां
पूरे देश में कोरोना वायरस को कहर को देखते हुए लॉकडाउन लागू है. हालांकि ८ जून से कई राज्यों में धार्मिक स्थलों को गाइडलाइन के अनुसार खोल दिया गया है। तिरुपति बालाजी में भी आम लोगों के दर्शन के लिए मंदिर के कपाट खोलें जा चुके हैं। सरकारी दिशानिर्देशों के मुताबिक, ११ जून से तिरुपति बालाजी मंदिर के दरवाजे आम श्रद्धालुओं के लिए खुल जाएंगे। आपको बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर गत २० मार्च से बंद है। ११ जून से सुबह ६:३० से शाम ७:३० तक मंदिर में आम लोग दर्शन कर पाएंगे।

दिशानिर्देशों के मुताबिक, एक दिन में केवल ६००० लोगों के दर्शन हो सकेंगे। हर घंटे में केवल ५०० लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति मिलेगी। इस संबंध में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम् ट्रस्ट ने ये भी साफ किया है कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक १० से कम और ६५ साल से अधिक आयु वाले लोगों को दर्शन की अनुमति नहीं दी जाएगी। मंदिर में कोरोना के टेस्ट के लिए स्थायी कैंप होगा जिसमें रोज २०० कर्मचारियों और श्रद्धालुओं का रैंडम टेस्ट होगा। कुल ६००० लोगों में ३००० लोग वीआईपी टिकट पर (३०० रुपए प्रति व्यक्ति) दर्शन कर सकेंगे। इसके लिए भी ऑनलाइन स्लॉट बुकिंग ८ जून को सुबह से शुरू हो चुकी है। आइए जानते हैं तिरुपति बालाजी के बारे में ये खास बातें।

तिरुमला की पहाड़ियों पर बना मंदिर
तिरुपति वेंकेटेश्वर मंदिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू एवं जैन मंदिर है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। तिरुमला की पहाड़ियों पर बना यह मंदिर इस इलाके का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अदभूत उदाहरण है।

बालाजी भगवान विष्णु के अवतार.
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती है। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।

१२० वर्ष की आयु तक जीवित रहे ।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, ११वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वह १२० वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई। वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहां पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहां आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।