प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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#विज्ञान या #धर्म
भगवान ने ऋषियों को वेदों के रुप में ब्रह्मज्ञान सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा गया है। इस ब्रह्म ज्ञान में देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों के बारे में बताया गया है। इस सबसे प्राचीन ज्ञान को ४ भागों में लिपिबद्ध किया यानी लिखा गया है। शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्निदेव, वायुदेव, आदित्य यानी सूर्य देव और अंगिरा ऋषि ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया। प्रथम ३ वेदों को अग्नि, वायु, सूर्य (आदित्य), से जोड़ा जाता है और संभवत: अथर्वदेव को अंगिरा से उत्पन्न माना जाता है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं।

चारों वेदों की खास बातें -

ऋग्वेद - यह सबसे पहला वेद है। ये पद्यात्मक है और आयुर्वेद इसका उपवेद है। ऋग्वेद के १० मंडल (अध्याय) में १०२८ सूक्त है जिसमें ११ हजार मंत्र हैं। इस वेद की ५ शाखाएं हैं। शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल, वायु, सौर, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा की जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र है। इसमें १२५ तरह की औषधियों के बारे में बताया गया है। औषधियों में सोम को महत्वपूर्ण माना गया है।

यजुर्वेद - धनुर्वेद इसका उपवेद है। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। इस वेद में यज्ञ के अलावा रहस्यमयी ज्ञान का भी वर्णन मिलता है। यह वेद गद्य मय है। इसमें यज्ञ की पूरी प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र लिखे गए हैं। यजुर्वेद में दिव्य वैद्य और कृषि विज्ञान के बारे में भी महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं।

इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।

कृष्ण - इस शाखा का संबंध वैशम्पायन ऋषि से है। इसकी भी चार शाखाएं और हैं।
शुक्ल - इस शाखा का संबंध याज्ञवल्क्य ऋषि से है। इसकी भी दो शाखाएं हैं और इसमें ४० अध्याय हैं।

सामवेद - इसका उपवेद गंधर्ववेद को माना जाता है। सामवेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। यह गीतात्मक यानी गीत के रूप में है। सामवेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। १८२४ मंत्रों के इस वेद में ७५ मंत्रों को छोड़कर शेष सभी मंत्र ऋग्वेद से ही लिए गए हैं।इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। इसमें मुख्य रूप से ३ शाखाएं और ७५ ऋचाएं हैं।

अथर्ववेद - इसका उपवेद स्थापत्यवेद है। अथर्ववेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों और चमत्कारिक चीजों का जिक्र है। इसके २० अध्यायों में ५६८७ मंत्र है। इसके ८ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं। यह वेद ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए परमात्मा की उपासना करने की शिक्षा देता है। इससे प्राप्त बुद्धि से मोक्ष मिलता है।