प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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#दिव्य_भारत_भव्य_भारत

#दिव्य_सनातन_भव्य_सनातन

#हिन्दुत्व_व_हिन्दू_इतिहास

छठवीं शताब्दी के भारत में क्रूरकर्मा हूण आक्रांता #मिहिरकुल_हूण की क्रूरता #पाशविक वृत्ति भारतीय जनमानस के साथ किए गए अत्याचारों का ऐतिहासिक वर्णन कश्मीर के इतिहासकार #कल्हण की जुबानी|

भाग ( २ )
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मध्य एशियाई बर्बर जनजाति हूण का पहला संगठित हमला ४५८ ईस्वी में भारत पर हुआ| हूण के इस गुप्तकालीन हमले का मुंहतोड़ जवाब गुप्त वंश के सनातनी पराक्रमी सम्राट स्कंदगुप्त द्वारा दिया गया| गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त ने अपने बेजोड़ युद्ध कौशल रणनीति से हूणो की घेराबंदी करते हुए उन्हें पूर्वी मध्य उत्तर पश्चिम अखंड भारत से बाहर खदेड़ दिया | आगामी ५० वर्ष तक फिर हूण भारत में नहीं घुस पाए | अखंड भारत की नियति के साथ काल का क्रूर मजाक तो देखिए स्कंद गुप्त जैसे प्रतापी महावीर की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई| गुप्त वंश में उनके पश्चात कोई प्रतापी शासक ना हो सका नरसिंह गुप्त बलादित्य को छोड़कर| गुप्त साम्राज्य तीन हिस्सों में बट गया| स्कंदगुप्त की मृत्यु के पश्चात पुरुगुप्त ,कुमारगुप्त द्वितीय,बुधगुप्त जैसे शासक हुए जो अयोग्य थे वैदिक धर्म को छोड़कर बौद्ध मत के अनुयाई हो गए| मिथ्या अहिंसावादी ,नास्तिक बौद्ध मत के संपर्क में आकर गुप्त सम्राटों की रही सही वीरता बल शौर्य पराक्रम भी जाता रहा|

इसी अवसर का लाभ उठाते हुए छठवीं शताब्दी के पहले दशक में हूणो का दूसरा संगठित सुनियोजित हमला अविभाजित पंजाब के रास्ते हुआ | हूणो का यह हमला पहले से अधिक मारक दीर्घकालिक प्रभाव को समाहित किए हुए था|हूण के इस हमलावर लुटेरे दल का सरदार था तोरमाण हूण | मध्य प्रदेश राजस्थान कश्मीर पंजाब के भू -भागों को उन्होंने जमकर लूटा| इस हमले की विशेषता यह थी इस बार हूण भारत को लूटने ही नहीं भारत में अपना स्थाई साम्राज्य कायम करने के मंसूबे से आए थे| इस दूसरे हमले के दुष्परिणाम स्वरूप अखंड भारत के कुछ हिस्सों पर ७५ वर्ष के हूण शासन की बुनियाद पड़ी| अत्याचार दमन लूटपाट के मामले में ७५ वर्ष का हूण शासन ७०० वर्ष के मुसलमानी अफगान मुगल शासन की ही कोटी में इतिहासकारों द्वारा गिना जाता है|

1515 ईस्वी में तोरमान हूण के पश्चात उसका पुत्र मिहिरकुल हूण भारत में हूण सत्ता संभालता है| वह 'साकल' को हूण साम्राज्य की राजधानी बनाता है ,जो अब सियालकोट है |विभाजन के पश्चात पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में चला गया है| क्रूरता के मामले में पश्चिम के इतिहासकार मिहिरकुल हूण को "भारत का अतिला" की उपाधि से नवाजते हैं | यूनानीयों ने उसे गोलस के संबोधन से पुकारा| चीनी पर्यटक संग -यून मिहिरकुल को गंधार का शासक ये था कहा है| चीन के ही प्रसिद्ध बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने उसे मोह- हिस -तो -चुनो कहा है| कश्मीर के कुछ ब्राह्मणों ने मिहिरकुल को दुर्बुद्धि राजा, भूलोक भैरव की संज्ञा दी|

मिहिरकुल हूण के विषय में सर्वाधिक पुख्ता ऐतिहासिक सुसंगत प्रमाणित उल्लेख १२वीं शताब्दी के कश्मीरी इतिहासकार राजकवि कल्हण के द्वारा रचित ऐतिहासिक ग्रंथ "राजतरंगिणी" में मिलता है| राजतरंगिणी में महाभारत काल से पांडव सहदेव से लेकर १२वीं शताब्दी तक के कश्मीर के राजाओं का उल्लेख मिलता है|

राजतरंगिणी ग्रंथ इतिहास का एक अनूठा रत्न है| इस ग्रंथ को ८ तरंगों में अर्थात अध्याय में लिखा गया है| जिनमें कश्मीर में शासन करने वाले राजाओं या जिनके शासन के अधीन कश्मीर रहा उन राजाओं के वंश क्रम उन राजाओं की विशेष उपलब्धियों गुण दोष सफलता असफलताओं का तटस्थ भाव से सटीक वर्णन किया गया है| राजतरंगिणी की प्रथम तरंग अर्थात पहले ही अध्याय में कश्मीरी इतिहासकार कल्हण मिहिरकुल हूण के विषय में इस प्रकार वर्णन करता है| यह वर्णन ५० से अधिक श्लोक के रूप में मिलता है| अंतिम श्लोकों में मिहिरकुल के पुत्र बक का भी उल्लेख मिलता है|

अथ म्लेच्छगणाकीर्ण मण्डलेचण्डचेष्टितः
तस्यामजो भून्मिहिरकुल कालोपमोनृपः

(श्लोक संख्या २८९, राज तरंगिणी)

भावार्थ /शब्दार्थ--- म्लेच्छ गणों से मंडल आकीर्ण होने पर उसका लड़का (तोरमाण हूण का) चण्डचेष्टा काल स्वरूप मिहिरकुल राजा हुआ| कल्हण मिहिरकुल की गणना वर्णन म्लेच्छ के रूप में कर रहे हैं| वैदिक वांग्मय आर्य विद्वानों भारतीय आचार्य शास्त्रीयों ने यूनानी अर्थात यवन शक कुषाण हूण पश्चात में मुसलमानों की गणना मलेच्छ वर्ग में ही की है| यह सिद्ध होता है मिहिरकुल वैदिक धर्मी भारतीय मूल का राजा नहीं था यदि भारतीय क्षत्रिय वर्ग का राजा होता तो कल्हन उसे आर्य नरेश की उपाधि से संबोधित करते... जैसा राज तरंगिणी में अन्य सनातनी भारतीय राजाओं के विषय में उल्लेख मिलता है|

मिहिरकुल ने हूण शासन की बागडोर संभालते ही सबसे पहले गांधार के हिंदू राजा पर हमला किया गांधार राजा के युद्ध बंदी निहत्थे सैनिकों को निर्ममता से सिंधु नदी के किनारे मौत के घाट उतार दिया| साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने इस ऐतिहासिक सत्य घटना पर "गांधार की एक बौद्ध भिक्षुणी" नामक नाटक लिखा है| मारे गए सैनिकों में उस बौद्ध भिक्षुणी का भी पति था| गंधार को पैरों तले कुचलने भीषण रक्तपात के पश्चात मिहिरकुल ने गांधार के राजा की अत्यंत रूपवती पुत्री गांधार की राजकुमारी कल्याणवती से जबरन विवाह किया | वही क्रूर अकांता मिहिरकुल के पतन का कारण बनी| लगभग २७०० वर्ष पहले गांधार महाजनपद की राजधानी तक्षशिला में स्थापित विश्वविख्यात तक्षशिला विश्वविद्यालय जिसमें महाभारत के पश्चात भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्याकरण आचार्य संस्कृत व्याकरण का अनुपम 'अष्टाध्याई' ग्रंथ लिखने वाले आचार्य पाणिनि, अखंड भारत के संस्थापक आचार्य चाणक्य ने शिक्षा अर्जित की उस तक्षशिला विश्वविद्यालय को अरबों अफ़गानों मुगल मुसलमान लुटेरे से सैकड़ों वर्ष पहले आग के हवाले करने वाला मिहिरकुल ही था| इस विषय में पूरी दुनिया के इतिहासकार एकमत में कहते हैं|

"भारत के सांस्कृतिक बौद्धिक विध्वंस के मामले में अर्थात प्राचीन विद्या के केंद्रों ग्रंथों को नष्ट भ्रष्ट करने के मामले में अरबों अफ़गानों मुगलों ने हूणों का ही अनुसरण किया"|

आप जब ऐतिहासिक ग्रंथ राजतरंगिणी का स्वाध्याय करेंगे तो मिहिरकुल हूण की क्रूरता बर्बरता अत्याचार नरशंसता सनक को सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी|

आप जानेंगे कैसे मिहिरकुल मनोरंजन के लिए पीर पंजाल हिमालय पर्वत की गहरी संकरी घाटियों ऊंची चोटियों से महावत सहित हाथियों को पहाड़ से नीचे धकेल गिराया करता था| हाथियों की करुण मार्मिक स्वर को सुनने के लिए जिसे सुनने में उसे बड़ा आनंद आता था| 'हस्तवज' के नाम से कश्मीर में वह स्थल आज भी मौजूद है|

आप जानेंगे कैसे मिहिरकुल ने छठवीं शताब्दी में २ करोड़ से अधिक दक्षिण भारत की महिलाओं के सतीत्व कौमार्य पर लांछन लगाते हुए अपने एक झूठे सपने सनक को साकार करने के लिए उनका कत्ल कर आया|

अखंड भारत, अखंड भारत के अधीन सिंघल दीप अर्थात आज के श्रीलंका के तीन करोड़ से अधिक मनुष्य के नरसंहार के कारण उसका नाम 'त्रिकोटीहन' कैसे पड़ा|

कैसे उसने श्रीलंका से हिंदू धर्म की वैष्णव संप्रदाय शाखा को मिटाया| दक्षिण भारत व श्रीलंका के पवित्र रेशमी स्वर्ण जड़ित वस्त्र भगवान विष्णु पदअंकित वस्त्र ' यमूसा देवा' की होली जलाई| श्री लंका से लौटते वक्त श्रीलंका के राजा की मदद करने वाले दक्षिण भारतीय राष्ट्रीयकूट कर्नाटक चोल राजवंशों के इलाके में कुआं में पानी के स्थान में उन्हें खून से भर दिया|

मिहिरकुल कैसे गली में निरपराध कुत्तों को भौंकने पर कत्ल करा देता था| जहाँ-जहाँ वह जाता था उस के आगमन से पूर्व मुर्दा खोर गिद्ध बाज उसके ऊपर मंडराते रहते रहते थे| कैसे वह अपनी कारगार यातना शिविरों में हिंदू और बौद्धों को उत्पीड़ित करता था १०८ नरमुंड देखकर भोजन करता था| इतना ही नहीं राज तरंगिणी से अलग अध्ययन से आप पाएंगे कैसे क्रूरता के मामले में मुसलमानों ने भारत में अपनी क्रूरता को उससे कम उसे जायज ठहराने का प्रयास किया, अरब के इतिहासकार अल- हसन ,लुटेरे अकबर के जीवनीकार अबुल फजल की 'आईने- अकबरी' में उसका उल्लेख मिलता है|

फिर लौटकर आप राज तरंगिणी में पाएंगे कैसे मिहिरकुल हूण उसके मरने के पश्चात उसके सिंहासन को देखकर कश्मीर की हिंदू बौद्ध जनता अनेक वर्षों तक भयभीत होती रही और राज तरंगिणी में ही अंत में आप पाएंगे कैसे उसने पराजित होकर अपने कुकर्म ,अपनी क्रूरता पापों के प्रायश्चित स्वरूप अपने शरीर के साथ भी क्रूरता करते हुए अग्नि से तपे हुए पलंग पर लेटकर कर आत्महत्या की| जो पीड़ा उसने लाखों-करोड़ों मनुष्य को दी, उस पीड़ा को उस ने मरते वक्त स्वयं भोगा| कल्हन ने इसका बड़ा ही सजीव मार्मिक वर्णन किया है |

इसी के साथ ही अगले अंकों में आपको बताया जाएगा मिहिरकुल को पराजित करने वाले राजा उसे सबक सिखाने वाले राजवंशों तथा शिव भक्त होने के उसके खोखले दावों के विषय में यह उस क्रूर शातिर की चाल थी| आर्य हिंदू नरेश यशोवर्मन से जीवनदान पाने के लिए|