बहुत लोगो का प्रशन है की साधु संत आदि जब देह त्याग करते है तो उनको समाधि क्यो दी जाती है उनकी देह को जलाया क्यो नही जाता जबकि सनातन धर्म अनुसार तो जलाना होता है।
एक साधक,संत जो होता है उनकी देह में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है उनके द्वारा की गयी तप साधना की ऊर्जा देह में बनी रहती है। जब उस देह को भूमि में समाधि के रूप में रखा जाता है तो उनकी ऊर्जा उस स्थान पर बनी रहती है। ये ऊर्जा सृष्टि में संतुलन बनाये रखने में सहायक होती है। इसलिए कहते है की सन्तो के कारण ही धरती टिकी हुई है। जब लोग उस समाधि का पूजन आदि भी करते है तो उस सकारात्मक ऊर्जा के कारण लोगो के कार्य बन जाते है।
लेकिन ध्यान रहे वो समाधि एक धर्मनिष्ठ संत या साधक की हो क्योकि आजकल तो लोग ऐसे ही समाधियां बना देते है जिसका कोई लाभ नही होता वो सिर्फ देखा देखी कार्य करते है। जो सिद्ध साधक रहे है उनके नाम से कार्य अभी भी कैसे हो जाते है इस बात विचार करने की है। यदि उनकी मुक्ति हो गयी तो कैसे कार्य होते है इसका कारण है उनकी मुक्ति तो हो गयी लेकिन उनकी ऊर्जा आज भी इस पृथ्वी पर है जिससे कार्य होते है।
नीम करौली बाबा, श्रीरामकृष्ण परमहंसः, बामा खेपा जी आदि सिद्ध संत जिनका नाम आज भी चलता है। इसलिए सिद्ध साधक समाधि लेते है अन्य किसी धर्म में ऐसा नही होता की कोई जीवित समाधि ले ले लेकिन सनातन धर्म में आज भी ऐसे बहुत से संत है जो जीवित समाधि ले लेते है। सनातन धर्म के सिद्ध सन्तो की महिमा अनन्त है।