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UP के देवेंद्र और भोला पांडे: इंदिरा गाँधी के लिए विमान अगवा किया तो कॉन्ग्रेस ने बना दिया MP-MLA

इंदिरा गाँधी की रिहाई के लिए 27 साल के देवेंद्र पांडे ने भोला पांडे के साथ मिलकर फिल्मी स्टाइल में इंडियन एयरलाइंस के विमान को हाइजैक कर लिया। दोनों ने क्रिकेट बॉल को रुमाल से ढककर उसे बम बताते हुए प्लेन को अगवा किया। दिल्ली जाने वाले प्लेन को वाराणसी ले गए। उस वक्त प्लेन में 132 यात्री सवार थे।

सत्तालोभ और तुष्टिकरण के लिए ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है जिसे कांग्रेस ने ध्वस्त न किया हो।
इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण अतीत में मौजूद है, जब विमान अगवा करने वाले 2 लोगों को कॉन्ग्रेस ने माननीय बनाने में देर नहीं लगाई। दोनों को न केवल पार्टी में पद दिया गया बल्कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी कई बार टिकट से ‘सम्मानित’ किया गया। बात हो रही है देवेंद्र और भोलानाथ पांडे की।

यह वाकया दिसंबर 1978 का है। किशन आर वाधवानी की पुस्तक ‘इंडियन एयरपोर्ट्स (शॉकिंग ग्राउंड रियलिटीज़)’ के अनुसार, भोलानाथ और देवेंद्र पांडे ने इंडियन एयरलाइंस के एक घरेलू उड़ान का अपहरण कर लिया था। देवेंद्र पांडे कॉन्ग्रेस के उन समर्थकों में से एक थे, जो अपने चहेते नेता के लिए कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे।

इंदिरा गाँधी की रिहाई के लिए 27 साल के देवेंद्र पांडे ने भोला पांडे के साथ मिलकर फिल्मी स्टाइल में इंडियन एयरलाइंस के विमान को हाइजैक कर लिया। दोनों ने क्रिकेट बॉल को रुमाल से ढककर उसे बम बताते हुए प्लेन को अगवा किया। दिल्ली जाने वाले प्लेन को वाराणसी ले गए। उस वक्त प्लेन में 132 यात्री सवार थे।

विमान अपहरण के बदले उन्होंने भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी कि रिहाई की माँग की थी, जिन्हें कि आपातकाल के बाद गिरफ्तार किया गया था। इन दोनों ने यात्रियों को छोड़ने के लिए मुख्यतः तीन शर्तें रखी थीं –

इंदिरा गाँधी को रिहा किया जाए।

इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी के खिलाफ लगे सारे आरोप खत्म किए जाएँ।

इंदिरा गाँधी को गिरफ्तार करने वाली केंद्र की जनता पार्टी की सरकार इस्तीफा दे।

हालाँकि, इस विमान अपहरण कि घटना को राजनीतिक हास्य का नाम दिया गया क्योंकि पांडे भाइयों ने विमान अपहरण के लिए बच्चों के खिलौने वाले हथियार का इस्तेमाल किया था। कुछ घंटों के लिए 132 यात्रियों को बंधक बनाए रखने के बाद, उन्होंने मीडिया की मौजूदगी में वाराणसी उतरने पर आत्मसमर्पण कर दिया था।

देवन्द्र पांडे को इस मामले में 9 महीने, 28 दिन जेल में भी रहना पड़ा था। देश में जब फिर से इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार बनी, तब इन पर लगे मुकदमों को वापस ले लिया गया।

गाँधी परिवार की भक्ति में उठाए गए इस कदम के कारण ही विमान अपहरण के इस संगीन अपराध के बावजूद ‘पुरस्कार स्वरूप’ कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें पुरस्कृत किया गया था- पहले उन्हें 1980 में विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी का टिकट मिला और बाद में लोकसभा के लिए। इस चुनाव में पांडे जीत गए और उत्तर प्रदेश की विधान सभा के सदस्य बन गए।

भोलानाथ पांडे ने वर्ष 1980 से 1985 और 1989 से 1991 तक दोआबा, बलिया से कॉन्ग्रेस विधायक के रूप में कार्य किया। दूसरी तरफ देवेंद्र पांडे दो कार्यकाल तक संसद के सदस्य रहे और उत्तर प्रदेश के महासचिव के रूप में कॉन्ग्रेस पार्टी की सेवा की।

दोनों पांडे बंधुओं को भारत में आपातकाल के दौरान जेल में सभी विपक्षी नेताओं की हत्या के विचार के साथ ही कई अन्य आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। भोलानाथ पांडे आजमगढ़ जिले से है, और देवेंद्र पांडे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से। दोनों ही युवा कॉन्ग्रेस के सदस्य थे।

विमान का अपहरण करना कुछ सबसे बड़े अपराधों में से एक है और ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास की न्यूनतम सजा से लेकर मौत की सजा तक हो सकती थी। लेकिन कॉन्ग्रेसी प्लेन अपहरणकर्ताओं को परिवार के लिए उठाए गए इस कदम के लिए संसद भेजकर सम्मानित किया गया।

विमान अपहरण की इस घटना के दशकों बाद, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की 2014 की एक रिपोर्ट से पता चला कि विमान अपहरणकर्ता भोलानाथ पांडे लोकसभा चुनाव के दौरान सलेमपुर से कॉन्ग्रेस का उम्मीदवार था।

इसके अलावा, विमान अपहरण की एक अन्य घटना के आरोपित गजिंदर सिंह ने 4 कट्टर सिख संगठन ‘दल खालसा’ कार्यकर्ताओं के साथ सितंबर 29, 1981 को दिल्ली से श्रीनगर जा रही एक इंडिया एयरलाइन्स उड़ान को अगवा कर लिया था और इसे लाहौर में उतारा गया था जहाँ वो पाकिस्तानी बलों द्वारा एक कमांडो ऑपरेशन में पकड़ा गया था।

गजिंदर सिंह की किस्मत इंदिरा गाँधी की रिहाई के लिए विमान अपहरण करने वाले पांडे बंधुओं जितनी अच्छी नहीं थी। गजिंदर सिंह को पाकिस्तान की अदालत ने सजा सुनाई थी। उसके इस कृत्य के लिए 14 साल की जेल की सजा दी गई और नवंबर 1994 में रिहाई के बाद से वह निर्वासन में रह रहा था। इस तरह भारत में दो विमान अपहरणकर्ताओं की दो अलग-अलग नियति तय हुईं।