विजय मिश्र's Album: Wall Photos

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*संबंध उसी आत्मा से,*
*जुड़ता है जिनका हमसे,*
*पिछले जन्मों का कोई रिश्ता'*
*होता है'*
*वरना दुनिया के इस भीड़ में..*
*कौन किसको जानता है..*

*सोने में जब जड़ कर हीरा,*
*आभूषण बन जाता है,*
*वह आभूषण फिर सोने का नही,*
*हीरे का कहलाता है!*
*इंसान की यह काया सोना है,*
*और कर्म हीरा कहलाता है,*
*कर्मो के निखार से ही,*
*सोने जैसे मूल्य के इन्सान की कीमत अमूल्य हो जाती है।*
*"सत्कर्म ही जीवन है!!"*

*आपका दिन मंगलमय हो*