Ravi Gudadhe 's Album: Wall Photos

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#चुपके_चुपके
जब हर तरफ से इंसान उदास परेशान होता है और उसे कुछ समझ नहीं आता तब आपका पता नहीं लेकिन हम जैसे चंद इंसान जाते हैं सिनेमा की तरफ जिसमें मन खुश करने की सबसे सुंदर विधा है कॉमेडी..जिसे फिल्मों में सबसे मुश्किल फन के रूप में भी जाना जाता है और इस विधा के मास्टर थे ऋषिकेश मुखर्जी..ऋषि दा की कोई सी भी फ़िल्म उठाकर देखिए..सिचुएशनल कॉमेडी के बादशाह ऋषि दा जिनकी हर फिल्म आप परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं और बरबस ठहाके लगा सकते हैं..वैसे तो ऋषि दा की हर फिल्म एक नगीना है लेकिन मैं बात करूंगा अपनी पसंदीदा फ़िल्म की..
सन 1975 में ऋषि दा ने मेनस्ट्रीम के शहंशाह अमिताभ धर्मेंद्र जया और शर्मिला को लेकर इस फ़िल्म के रंग भरे थे..कहानी है एक घासफूस (बॉटनी) के प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी की जिन्हें प्यार हो जाता है सुलेखा चतुर्वेदी से जो अपने जीजाश्री की जबरदस्त कायल हैं यहां तक कि उन्हें पूजने की हद तक सम्मान देती हैं..उन जीजाजी यानी कि श्री राघवेंद्र जी से खुद को श्रेष्ठ साबित करने के चक्कर मे प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी मदद लेते हैं अपने दोस्त अंग्रेजी के प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा से जिन्हें बॉटनी का B भी नहीं आता अपने एक और दोस्त प्रशांत से जिनकी समस्या है उनकी बीवी लता और उनकी साली वसुधा..श्री राघवेंद्र जिन्हें हर काम मे सिर्फ शुद्ध भाषा पसन्द है और जो अपने ड्राइवर जेम्स डिकोस्टा से परेशान है इसी वजह से क्योंकि उसकी भाषा अशुद्ध है..फिर इस कहानी में एंट्री होती है प्यारेमोहन इलाहाबादी(परिमल त्रिपाठी) की..फिर उसके बाद जो हास्य ठहाके लगते हैं वो बस आप सिर्फ फ़िल्म देखकर ही महसूस कर सकते हैं..
परिमल त्रिपाठी के रोल में धर्मेंद्र ने शायद अपने सम्पूर्ण फिल्मी करियर की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी परफॉर्मंस दी है.। सुलेखा जी के रोल में शर्मिला टैगोर पटौदी एकदम रच बस गईं है..अमिताभ की सुकुमार सिन्हा के रोल में जितनी तारीफ की जाए वो कम है..प्रशांत के रोल में असरानी एकदम जबरदस्त..वसुधा के रोल में जया भादुड़ी सौम्य सहज लगी हैं..जेम्स डिकोस्टा के रोल में आप हम सबके प्यारे केश्टो मुखर्जी.। लेकिन फ़िल्म का सबसे शानदार एक्ट जिनके हिस्से आया है वो हैं राघवेंद्र के रोल में ओमप्रकाश जी का..उनके चेहरे के भाव अपने आप मे ऐसे लगे हैं जिन्हें देखकर आपका मन बरबस ही ठहाके लगाने को आतुर हो जाएगा
कुल मिलाकर मेरा ये दावा जरूर है भारत के सिनेमा इतिहास में ये फ़िल्म निसंदेह एक मील का पत्थर है..जरूर देखिए जहां से भी उपलब्ध हो और मैं ये जरूर कहूंगा कि आप हंसते हंसते बौरा जरूर जाएंगे..