अंगूर 1982 में रीलीज हुई काॅमेडी फिल्म है....जिसमें संजीव कुमार और देवेन वर्मा ने डबल रोल किये थे....साथ में थी मोसमी चटर्जी,अरुणा इरानी और दीप्ती नवल....
और गुलज़ार द्वारा लिखित और निर्देशित ये फिल्म बेसीकली शेक्सपीयर के नाटक द कॉमेडी ऑफ एरर्स पर आधारित है...
इन फैक्ट गुलजार के इसी प्लाॅट पहले भी किशोर कुमार अभिनित फिल्म बनाई गयी थी....''दो दूनी चार''....पर वो कामयाब नहीं हुई....
पर गुलजार को अपनी कहानी पर पूरा भरोसा था....इसलिये उन्होंने 80's में उन्होंने खुद इस पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया....और नाम रखा ''अंगूर''...
सभी पात्र निर्दोष हैं और भाग्य सभी पात्रों को एक स्थान पर लाने में मुख्य भूमिका निभाता है....बाकि सब सिचुएशनल है....
यह फिल्म जन्म के समय अलग-अलग जुड़वाँ बच्चों की दो जोड़ी जो बिछड़ जाती है और वयस्क होने पर वापस किन परिस्तिथियों में मिलती है....और उनके जीवन को कैसे प्रभावित किया जाता है....उसकी कहानी है....
राज तिलक (उत्पल दत्त) और उनकी पत्नी (शम्मी) अपने जुड़वां बेटों के साथ यात्रा पर हैं...तिलक साहब अपने दोनों बच्चों को अशोक कहते हैं.....क्यूँकि वो दोनों बच्चे एक जैसे दिखते हैं....इसलिये उनका नाम भी एक ही होना चाहिय....तिलक साहब ये तर्क देते हैं एक ही नाम रखने का...
भाग्य से.....वो लोग जुड़वा बच्चों के एक और सेट को अपनाते हैं....जिसे वे बहादुर कहते हैं......
पर एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के चलते परिवार टूट जाता है...
दोनों माता-पिता को दोनों जुड़वा जोड़ियों में से एक एक बच्चे के साथ अलग होना पड़ता है.....
अशोक और बहादुर की पहली जोड़ी अपनी अपनी पत्नियों -सुधा(मोसमी चटर्जी) और प्रेमा(अरुणा ईरानी) के साथ एक ही घर में रहते हैं....
सुधा की बहन तनु(दीप्ती नवल) भी उन्हीं के साथ रहती है....
बहादुर और प्रेमा उस घर में नौकर और नौकरानी के रूप में कार्य करते हैं....
अशोक(जासूसी दिमाग वाला) और बहादुर(भाँग प्रेमी) की मालिक-नौकर दूसरी जोड़ी एक अन्य शहर में रहती हैं और दोनों अविवाहित हैं....
संयोग से..... इस जोड़ी को उसी शहर में आना पड़ता है जिसमे पहली जोड़ी रहती है.....
परिस्थितियां कुछ एसे घटती हैं कि वे पहली जोड़ी के घर में पहुँच जाते हैं.... सुधा और प्रेमा भी उन्हें अपना-अपना पति समझने लगती हैं....
उनके व्यवहार से सुधा, प्रेमा, तनु और उनके सभी परिचित हैरान और परेशान हो जाते हैं और अनेक हास्यप्रद परस्थितियों उत्पन्न होती हैं....
अब एक ही शहर में दो अशोक और दो बहादुर हैं.....
अब शुरू होता है धमाल....
जब इन दोनों जोड़ियों का आमना सामना होता है....तब सबको असलियत का पता लगता है.....
क्या क्या होता है....वो मैं नहीं बताउँगा....फिल्म बार बार देखे जाने योग्य है....संगीत भी निराश नहीं करेगा....राहुल देव बर्मन साहब का है....
इन फैक्ट....ये पूरा पोस्ट टाइप करते हुए मेरे दिमाग में बस ''प्रीतम आन मिलो'' गूँज रहा था....
अगर आपने नहीं देखी है...तो यकीन मानिये....आपने शानदार फिल्म मिस की है....पहली फुर्सत में देख डालिये.....
और इस फिल्म में बैस्ट परफार्मेंस इन कामेडी रोल के लिये देवेन वर्मा को फिल्मफेयर मेला था शायद....और संजीव कुमार बैस्ट एक्टर के लिये नाॅमिनेट हुए थे....
इस से ज्यादा अच्छा मुझे लिखना नहीं आता....आप फिल्म देख कर इन्ज्वाय करेंगे....ये पक्का है....