प्रमेन्द्र सिंह(बाबुसाहब) 's Album: Wall Photos

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कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा?
कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा!
क्या उसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएं, कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए!