Rahul singh Rajput (कर्मवार)'s Album: Wall Photos

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#गढ़_देवी
मढ़ौरा /छपरा (बिहार )
ये वही मढ़ौरा है....जो ब्रिटिश शासन के समय सारण जिले का केंद्र हुआ करता था ! तब के समय.... यहाँ फिरंगियों की सैन्य छावनी हुआ करती थी !
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सारण जिला (छपरा /सिवान /गोपाल गंज ) कहने को तो डिस्टिक था....लेकिन अंग्रेजों की सारी गतिविधियाँ मढ़ौरा से हीं संचलित हुआ करती थी ! चुकी अंग्रेज ऑफिसरों के रहने का इंतजाम भी इधर हीं था...और सैन्य छावनी भी यहीं पे थी...इस वजह से हर इलाके के लिए गोरे सिपाहियों को दिशा निर्देश यहीं से मिलता था !
इन सब के अलावा.... एक कारण और था...जो फिरंगियों के लिए मढ़ौरा को महत्वपूर्ण बनाता था... और वो कारण था...मढ़ौरा का उद्योगिक नगर होना !
ब्रिटिशकालीन मढ़ौरा में एक बहुत बड़ी चीनी मिल हुआ करती थी...जो उत्पादन के मामले में शीर्ष पे हुआ करती थी ! चीनी मिल के अलावा यहाँ पे एक चॉकलेट कारखाना भी था.... जो मॉटन के नाम से देश विदेश में बहुत हीं प्रसिद्ध था !
मढ़ौरा में इन कारखानों के खंडहर आज भी मौजूद हैं...जिसके टूटते ढहते वजूद....आज भी अपनी गथा सुनाते प्रतीत होते हैं !
पता नही वो कौन सा कारण है....जो आजतक काले अंग्रेज मढ़ौरा को वो दर्जा नही दे पाए.... वो तरजीह नही दे पाए.... जिसे अंग्रेज देते आए थे !
इन्ही कारखानों से लग कर....एक एक लम्बे चौड़े प्रांगण वाला माता का स्थान है ! जिनकी मान्यता और प्रसिद्धि दूर दराज तक है ! ये जनमानस का आदर और आस्था हीं है.... जो किसी भी वाहन को खरीदने के बाद.... सबसे पहले गढ़ देवी माता के प्रांगण में....वाहन का पूजा कराया जाता है !
गढ़ देवी माता के संदर्भ में.....एक छोटी सी कहानी है.... और ये कहानी तब की है....ज़ब अंग्रेजों का शासन हुआ करता था !
ये ब्रिटिशकालीन शासन का वो कालखंड था.....ज़ब भारतीय युवाओं में गोरों के प्रति....विरोध का ज्वाला धधकना शुरू हो चुका था !
एक दिन कुछ यूँ हुआ....की कुछ दलित युवतियां खेतों से मवेशियों के लिए चारा काट के लौट रहीं थी....ठीक उसी समय अंग्रेज सिपाहियों की एक टोली....खेतों के तरफ गश्ती करते हुएनिकल आई थी....फिर क्या था..... अंग्रेज लगे युवतियों से छेड़खानी करने......वो उनपे अश्लील फ़ब्तियाँ कसते हुए....काफी गंदे -गंदे इशारे भी किए जा रहे थे ! वो युवतियां किसी तरह से अपना अस्मत बचाते हुए वहां से भाग पड़ी....क्यों की गोरे जोड़ जबरदस्ती पे उतारू हो गए थे !
देखते देखते ये बात आस -पास के गाँवों में जंगल के आग की तरह फ़ैल गई.... इधर दलित समुदाय भी क्षेत्र के राजपूतों के पास गुहार लेके पहुँच गया.....की क्षत्रियों के होते हुए भी....इलाके के बहन बेटियाँ सुरक्षित नही हैं.....ये शर्म से डूब मरने वाली बात है !इस घटना को सुनके इलाके के नवयुवक आक्रोश से धधक उठे थे....फिर देखते हीं देखते राजपूतों के नेतृत्व में युवकों की एक टोली तैयार की गई.....ततपश्चात सब युवक उस तरफ को चल दिए....जिधर अंग्रेज सिपाही गए हुए थे !
चंद घंटे में हीं....छापामार युद्ध के तर्ज पर...अंग्रेजो की पूरी टोली को पकड़ लिया गया....ये वही इलाका था, जहाँ आज गढ़ देवी माता का भव्य मंदिर है !
तब वो इलाका चारो तरफ गन्ने के खेतों से घिरा रहता था...इन्ही गन्ने के खेतों में अंग्रेजों की उस पूरी टोली को....काट पिट के मौत के घाट उतार दीया गया ! गोरों की सामूहिक हत्या के बाद...अब सबसे बड़ी समस्या ये थी.....की लाशों का क्या किया जाय....खून से सने गन्ने खेत भी एक बड़ी समस्या थी....हत्या के इतने सारे सबूतों को मिटाना कोई आसान काम नही था !
काफी राय विमर्श के बाद लाशों को उस नाले के अंदर डाला गया......जिनमे चीनी मिल और मॉटन मिल का गंदा अपशिष्ट कचरा बह के गिरता था ! ये कींचड़ भरा दलदली नाला ""जान"" के नाम से जाना जाता था....जो आज भी वजूद में है !
लाशों को ठिकाने लगाने के बाद भी ये....भय बराबर बना हुआ था, की अगर लाश कहीं बरामद हो गई....तो मुसीबत खड़ा हो जाएगा ! उसपे से खून से लिथरे गन्ने के खेत अब भी समस्या बने हुए थे !
वो कहते हैं ना....की मनुष्य ज़ब विकट परिस्थिति में घिरा होता है....तो देवी -देवता के शरण में चला जाता है....यहाँ भी यही हुआ !
उधर अंग्रेज सिपाही ज़ब छावनी नही लौटे....तो उनकी खोज बिन सरगर्मी से शुरू हो गई थी ! इधर उन्हें मौत के घाट उतारने वाले नौजवान, उस नीम के पेर तले शीश झुकाए बैठे थे.....जहाँ गढ़ देवी माता का छोटा सा स्थान बना हुआ था !
"हे माता हमने जो किया, अपने मान /सम्मान और इज्जत की रक्षा के लिए किया ! अब हम आपकी शरण में हैं !अगर हमलोग धर्म के राह पे हैं, तो आप हम बालकों की रक्षा कीजिए "
फिर जो हुआ वो यक़ीनन काफी विचित्र था.....मिनटों में आकाश काले काले बादलों से घिर गया ! देखते हीं देखते जोरों की मूसलाधार बरसात होने लगी....ऐसा बादल....ऐसी बरसात वर्षा ऋतू में भी नही हुई थी....जो कार्तिक मास में हो रही थी !
कुछ हीं देर में खून से लिथड़े गन्ने के खेत धूल गए....अब कहीं कोई ऐसा निशान नही बचा था...जो हत्या की चुगली करता हो !
पुरे सप्ताह भर अंग्रेजों को खोजने का काम चलता रहा....लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात हीं रहा !
आखिरकार गोरों को ये लगने लगा की मामला हत्या का है, सिपाहियों को मार के लाश ठिकाने लगा दीया गया है......लाश की खोज में इलाके का हर वो जगा खंगाला गया जहाँ लाश छिपाया जा सकता था.....नदी /नालों के साथ साथ उस पोखर में भी जाल डाला गया.....जहाँ लाश डुबोया गया था....यहाँ तक की खोजी कांटा भी डाला गया ! लेकिन लाश क्या....कपड़े का एक टुकड़ा तक बरामद नही हुआ !
स्थानीय लोगों की नजर में....ये गढ़ देवी माता का कृपा था ! तब से माता की ख्याति और दूर दूर तक फ़ैल गई !
आज वो छोटा सा स्थान...... एक वृहद मनोरम प्रांगण है, जिसमे और भी देवी देवताओं के मंदिर बन गए हैं !
(अविनाश सिंह कर्मवार)