ईश्वर भी बड़ा ही रोचक हैं। जब उन्होंने हम मनुष्यों को दिमाग और विवेक दिया तब सम्भवता, उन्हें ज्ञात हो गया था कि मनुष्य जैसे जैसे प्रगति के मार्ग पर आगे चलेगा, तब वह अपने आप को ईश्वर का दर्जा देने लगेगा और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगेगा।
इसलिए, वह समय समय पर कटपुतली की तरह कुछ डोर अपनी ओर खींचते रहता हैं। लेकिन फिर भी जब मनुष्य नहीं मानता, वह उससे परिहास करके जब डोर अपनी ओर खींचता हैं तब वो बाकी मनुष्यों को सीख देने का प्रयास करता हैं।
लेकिन, यह तो मनुष्य पर निर्भर है ना कि वह कितना सीखता है?.......शुभ प्रभात