हमने मंदिर इस ढंग से बनाए थे कि उनमें आवाज गूंजे। आवाज गूंजने को ध्यान में रखा था। मंदिर का पूरा स्थापत्य, उसका पूरा आर्किटेक्चर आवाज को गुंजाने को ध्यान में रख कर बनाया गया था। वह इस खबर को देने के लिए कि एक तो मंदिर खाली है। उसमें हम कुछ रखते नहीं। वह खाली होना ही चाहिए। क्योंकि वह हमारी आखिरी खाली अवस्था का प्रतीक है। जहां हम बिलकुल खाली हो जाएंगे और जहां नाद गूंजेगा। मंदिर के द्वार पर ही हमने घंटा लटका रखा था। जो भी आए, पहले घंटे को बजाए, क्योंकि द्वार पर नाद है।
ये सब प्रतीक हैं उस परमद्वार के। बिना घंटा बजाए कोई मंदिर में प्र्रवेश न करे! क्योंकि नाद में ही प्रवेश है। और घंटे की यह खूबी है कि तुम बजा दो, तो भी वह गूंजता रहता है। और जब तुम प्रवेश करते हो मंदिर के द्वार में तब घंटे का नाद गूंजता रहता है। उस नाद में ही मंदिर के द्वार में प्रवेश करने की व्यवस्था है। बिना बजाए कोई प्रवेश न करे! क्योंकि वैसे ही नाद में, तुम परमात्मा में भी प्रवेश करोगे।