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सनातन धर्म की महान वर्ण व्यवस्था का पालन करते हुए
भारतीय राजनीति में जिन्हें दलित कहा जाता है उन्हीं में से एक
कन्हैया प्रभु नंद गिरि जी को महामंडलेश्वर बनाया जा रहा है।

जो जातिवाद की राजनीति करने वाले और हिन्दुओ को दलित सवर्ण में बांटने वालों के लिए बड़ा कष्टदायक समाचार है ।

इससे पहले कांची शंकराचार्य 500 शुद्र पुत्रों को गुरुकुल में शिक्षा देकर पुरोहित के पद पर नियुक्त कर चुके हैं
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1755289327841984&id=1321008927936695

अब प्रश्न यह है कि
क्या दलित / शुद्र भी ब्राह्मण बन सकते हैं ???

उत्तर :- हां निश्चित ही उनके ब्राह्मण बनने का मार्ग खुला है।
सनातन धर्म में हर मनुष्य को जन्म से समान दृष्टि से देखा गया है परंतु वर्तमान में कई लोग कहते हैं कि यदि सनातन धर्म में समानता का महत्व है तो
दलितों को ब्राह्मण बना कर दिखाओ तो मैं उन्हें कहता हूं कि वे गुरुकुल आए
, अपने बच्चों को गुरुकुल भेजें ब्राह्मण बनने के समस्त द्वार हर मानव के लिए खुले हुए हैं ।

ब्राह्मणत्व अर्जित करो और ब्राह्मण बन जाओ।
किसी ने तुम्हें कभी नहीं रोका । गुरुकुलों के द्वार पहले भी तुम्हारे लिए खुले थे आज भी तुम्हारे लिए खुले हैं।

ब्राह्मण तभी बन सकते हो जब तुम ब्राह्मणीय कर्मों में श्रद्धा निष्ठा और विश्वास रखो!
और मैं कोई खोखली बात नहीं कर रहा हूं ।
रामायण काल , महाभारत काल और वर्तमान समय के ऐसे हजारों उदाहरण मेरे पास हैं , जिनमें ऐसे लोगों ने ब्राह्मणत्व को अर्जित किया ,ब्राह्मण बने, ब्राह्मण कर्मों को किया जिनके पिता ब्राह्मण नहीं थे ।
ब्राह्मण बनने का मार्ग तभी खुल सकता है जब तुम ब्राह्मणत्व अर्जित करने के लिए तप करो ,
वैदिक सनातन धर्म में आस्था रखो,निष्ठा रखो और इसके इसकी रक्षा और पोषण के लिए कार्य करो ।
जाति का सनातन संस्कृति सनातन धर्म में कोई अस्तित्व नहीं है और वर्तमान जाति व्यवस्था का कोई सांस्कृतिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी नहीं है।
जैसे जैसे गुरुकुल ख़त्म होते गए वैसे वैसे जातिवाद हमें जकड़ता
चला गया...
जिन्होंने कभी वेद शास्त्र नहीं पढ़े वे भी ब्राह्मण बनते गए, राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा की भावना से हीन लोग क्षत्रिय बनाते चले गए
और यहीं से हमारा घोर विनाश प्रारम्भ हुआ जो आज भी जारी है .....

जन्म से न कोई ब्राह्मण होता है , न क्षत्रिय होता है , न वैश्य ,शुद्र की सन्तान योयता अर्जित कर ब्राहमण बन सकती है !!
इस बात का शास्त्रीय और प्रमाणिकता आधार यास्क स्मृति और मनुस्मृति है ।

शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषूर्मृदुवागनहंकृत: |
ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते || 9/335 ||

अर्थात शुद्र भी अन्य तीनों वैश्य ,क्षत्रिय और ब्राह्मण वर्णों को पा सकता है !

आगे मनु महाराज स्पष्ट शब्दों में घोषणा करते हैं

शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् |
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च || 10/65 ||

भावार्थ – शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो सकता है अर्थात गुणकर्मों के अनुकूल ब्राह्मण हो तो ब्राह्मण रहता है तथा जो ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के गुण वाला हो तो वह क्षत्रिय वैश्य और शूद्र हो जाता है.

इस तरह यह बात प्रमाणित हो जाती है कि जन्म से हम सब, हर बालक समान है और उसके ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शुद्र बनने के मार्ग सदैव खुले हैं ।

इसमें तनिक भी भेदभाव नहीं है तो जो ब्राह्मण बनना चाहते हैं वे गुरुकुल में आ सकते हैं, वे अपने बच्चों को गुरुकुल में भेज सकते हैं उनका स्वागत है !

आप अपने बालों को गुरुकुल में भेजें बालक का पुरुषार्थ,उसकी लगन,उसका तप उसे ब्राह्मण बना सकता है।इसको लेकर कोई जातीय भेदभाव नही है।
और इस बात को लेकर भी बिल्कुल न डरें कि ब्राह्मण बालक ब्राह्मण बन कर केवल पुरोहित का कार्य कर सकता है ऐसा नहीं है कि गुरुकुल बालकों को बहुत सारे क्षेत्रों के लिए तैयार किया जाता है।
केवल मंदिरों में पूजा पाठ कराना मात्र ब्राह्मण का कर्तव्य नहीं है । इसके अतिरिक्त ज्ञान- विज्ञान और अनुसंधान में लगना समाज का मार्गदर्शन करना, शिक्षण, चिकित्सा,लेखन,न्याय ,पुरोहित आदि आदि कार्य भी ब्राह्मणीय कर्मों के अंतर्गत आते हैं ।
गुरुकुल के विद्यार्थी को क्या बनना है ,इसकी पूर्ण स्वतंत्रता होती है, इसका उसके जन्म और जाति से कोई संबंध नही है।
यह उसकी योग्यता और अर्जित सामर्थ्य पर निर्भर करता है, और गुरुकुलों में यह परंपरा आज भी पूर्णतः जीवंत है ।
इस तरह यह बात स्पष्ट हो जाना चाहिए कि सनातन धर्म में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है ।
सनातन धर्म जन्म से किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करता हर किसी के लिए उत्थान के सारे मार्ग खुले हैं ।
शुभमस्तु

विवेकानन्द विनय
@vivekanandvinay
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जय श्रीराम