वामियों को महारत होती है तो समस्याओं को बड़ा कर दिखाने में।
या जहां समस्या है ही नहीं वहाँ चिल्ला चिल्ला कर कहना कि तुम लोगों की समझ कम है कि तुम समस्या को पहचान नहीं सकते।
मंथरा का उदाहरण सब से बढ़िया है कि उसने श्री राम के नियोजित युवराज्याभिषेक से प्रफुल्लित कैकेयी को बरगला कर इतना भड़काया कि उसने डर के मारे श्रीराम को चौदह वर्ष वनवास में भेजने की मांग की। मंथरा को वा-मियों की कुलदेवी मानना चाहिए।
एक दूसरे के प्रति दुर्भावना फैलाने क मौका देखा नहीं कि ये एक का पक्ष ले कर दूसरे के खिलाफ मोर्चा लगा देते हैं। जो भीम इनकी वास्तविक दुष्टता को सब से बेहतर जानता था, इनके विरोध में आधुनिक भारत का सब से प्रखर और मुखर चिंतक रहा, उसका नाम लगानेवालों को भी मीम ने अपने वश में कर लिया इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है ?
आज विकास दुबे को लेकर यही मगरमच्छ मचमच करते आँसू बहाते आ गए हैं। चित्र देखिये। वैसे एक और बात, कई व्हाट्सएप्प ग्रुप में इनकी एंट्री ही महर्षि दयानन्द के विरुद्ध कुछ अनर्गल लिखते हुए होती है कि देखो हिंदुओं, ये क्या बोल रहे हैं।
हुदैबिया की सुलह से फतेह मक्का तक के काल का अभ्यास करें। युद्ध रुका नहीं, बस तरीके बदले हैं। मक्का के रहनेवाले गाफिल रहे, मूर्तिपूजक वे भी थे।