साठ के दशक में इस तथाकथित जामा मस्जिद के सामने के. सी. ब्रदर्स (कान्तिचंद ब्रदर्स) के नाम से एक दुकान थी। इसके मालिक एम. डी. शाह ने इस दुकान को गिराकर नई दुकान बनाई, जिसका नक्शा अहमदाबाद नगर निगम ने पास किया। लेकिन दुकान के बनते ही जामा मस्जिद के ट्रस्ट की ओर से एम.डी. शाह को एक नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि उनकी दुकान मस्जिद से ऊंची है। अत: सबसे ऊपर की मंजिल आप गिरा दें।
शाह इस पर कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करते, उसके पहले अहमदाबाद नगर निगम ने भी सबसे ऊपर की मंजिल तोड़ने का नोटिस थमा दिया।
इन सब बातों से परेशान शाह को किसी ने बताया कि पी. एन ओक के पास बहुत कुछ जानकारी है।
इसके बाद एम. डी. शाह ओक से मिले। उन्होंने बड़ा सरल उपाय बताया।
के. सी. ब्रदर्स के वकीलों द्वारा एक नोटिस जामा मस्जिद के प्रबंधन को भेजा गया जिसमें लिखा गया,
‘‘यह एक अपहृत हिन्दू मंदिर है, जिसे मस्जिद बनाया गया है। अत: उस पर मुसलमानों का कोई हक नहीं बनता। इसलिए के. सी. ब्रदर्स की इस दुकान की ऊपरी मंजिल को गिराने का प्रश्न ही नहीं उठता।’’
यह उत्तर मिलते ही जामा मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने अपना नोटिस वापस ले लिया और उस दिन से आज तक शाह को एक भी नोटिस या पत्र मस्जिद कमेटी का नहीं आया है..!
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