Jalesh Jugnu Mahto's Album: Wall Photos

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#सदान कौन ?
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*#सदान शब्द कोई मौलिक शब्द नही है।बी पी केशरी जी के अनुसार-झारखंड मे 30%आदिवासी और70%गैर आदिवासी रहते है(झारखंड के सदान-पृ-9)पुरा पुरी भ्रामक है।वास्तव मे झारखंड मे 26%सरकारी आदिवासी या अनुसूचित जनजाति और लगभग40-45%गैर सरकारी आदिवासी रहते है।(कयी आदिवासी आज दलित और पीछडे मे भी गिने जा रहे है)
* झारखंड मे #सदान नाम की न तो कोई जाति पायी जाती है न धर्म, #प्रजाति या रेस ही पायी जाती है।
* फादर पीटर नौरंगी #सदान या #सदरी शब्द को #निषाद या निषादी शब्द का विकृत रूप बताते है।पर निषाद से सदान या सदरी शब्द कैसे बना?समझ से परे है।
* केसरी सर #सद का अर्थ वस जाना बताते है।अर्थात जो लोग बाहर से यहाॅ आए और वस गये वो सदान कहलाए।(झारखंड के सदान-पृ12)सही फरमाए है।#सदान अर्थात #बाहरी_आप्रवासी।पर केसरी साहाब खुद ने यहा एक चालाकी या यु कहिए धुर्तता की है, कि कुडमाली भाषी जन को भी सदान कहकर कुड़मी के कंधे मे बंदुक रख कुड़मी की ही शिकार करने की कोशिस की है।यहाँ केसरी सर फॅस गये।क्योकि कुड़मी झारखंड के प्राचीनतम निवाशी है और भागलपुर और संथालपरगना मे लगभग600ई पुर्व स्थापित #चंपा स्टेट की निंव #खेरवाल_कविला ने ही रखी थी ।जिसमे संथाल कुड़मी भूमिज मुण्डा विरहोर आदि शामिल थे (देखे-संथाल परगना डिस्ट्रीक्ट गजेटीयर-पृ-107)बाद मे ई82मे स्थापित #पंचकोट राज की स्थापना भी कुड़मी वंश ने की थी।(देखे ट्राईब एण्ड कास्ट-एच एच रिजले-पृ-536 डिस्कृप्टीबइथिनोलॅजी ऑफ रूरल बंगाल-पृ316,स्टेटीस्टीखल एकाउन्ट ऑफ मानभूम-डबल्यु डबल्यु हंटर-पृ192)
* बी पी केशरी सर के अनुसार #संसकृत शब्द #सत से सदान बनी हो सकती है।(झारखंड के सदान-पृ-12) अगर ऐसा है तो संसकृत शब्दकोश मे सदान शब्द क्यो नही है???
*मुण्डारी हो संथाली आदि भाषा मे एक शब्द मिलता है-#सदोम-जिसका अर्थ है -#घोडा।(वही पृ-12)अर्थात घोडे पालक या आर्य।तो सिधा कहिए कि झारखंड मे पडोसी राज्य से आजादी के बाद आकर वसे लोग सदान है?घुमाकर कान पकड़ने और झारखंडी मूल के लोगो को इस सदान शब्द की डोर मे बाँधने की क्या आवश्यकता है?
*संसकृत शब्द #सत का अर्थ है-बुद्धीमान,सुन्दर शिष्ट,मंगलकर गुणसंपन्न।और इसी शब्द से बना सदान।(वही पृ-12)तो फिर सीधे साधे सरल और #सावले रंग वाले झारखंडी का शिकार करने के लिए सदान शब्द की कटघरे मे क्यो डाला जा रहे है?
*बी पी केसरी सर अपने किताब झारखंड के सदान मे लिखते है-खोरठा नागपुरी पंचपरगनिया और कुड़माली भाषा सदरी भाषा के चार रूप है।क्या बात है?केसरी सर?मियाँ की जुती मियाँ का सर।वही बी पी केसरी सर -#बीर_भरत_तलवार द्वार प्रकाशित और संपादीत पत्रीका -#सालपत्र मे दिए एक इन्टरव्यु मे स्वीकार करते है कि झारखंड की क्षेत्रीय भाषा के मूल मे और कुल मे #कुडमाली भाषा ही है।अर्थात-खोरठा नागपुरी पंचपरगनिया आदी भाषा कुड़माली की ही उपज है।केसरी सर आप कही कुछ कही कुछ कहते है?क्या बात है?भाषा की उत्पत्ति को मोसम की तरह बदलते रहने वाली चीज नही है।
*ई टी डाल्टन-डिस्क्रीप्टीव इथिनोलॅजी ऑफ बंगाल के पृ-319-20मे लिखते है कि-झारखंड के सभी #राजपरिवार या #राजे_महाराजे जो अपने को क्षत्रीय मानते है आर्यो के वंशधर नही है और सभी स्थानीय झारखंडी जनजातीय मूल(कोल भुइया घटवाल मुण्डा संथाल कुडमी) लोग है।इन लोगो ने ब्रह्मणो को बुलाकर जनेउ पहन कर अपने जाती को छोड क्षत्रीय बनने की कोशिस की थी।ये बात केसरी सर ने अपनी किताब के पृ-14मे उल्लेख की है।फिर वही बी पी केसरी रातु राज परिवार जो मुण्डा थे क्योकर नागवंशी राजपुत कहते है?या बिना किसी प्रमाण के पंचकोट राजवंश को गोवंशी राजपुत कहते है।जबकि राजपुतो मे गोवंशी या नागवंशी जैसी कोइ वंश नही पायी जाती।(गुग्ल मे राजपुत वंशावली की सुचि उपलव्ध है ,देख सकते है)
*अंग्रेज गवर्नर E A Gate-की कथन को शरत चन्द्र राय अपनी प्रशिद्ध किताब-#मुण्डा एण्ड देयर कण्ट्री की प्रस्तावना मे उद्ध्रीत करते हुए लिखते है-छोटानागपुर के मुण्डाओ की परेशानी तब सुरू हुई जब उनका राजा-रातु राज परिवार ने खुद को हिन्दु धर्म मे दिक्षित कर अपने को क्षत्रीय घोषित कर लिया और बाहरी लोगो को लाकर छोटानागपुर मे वसाना सुरू किया।(झारखंड के सदान-पृ-47)तो केसरी सर जब आपको पता है कि रातु के राजपरिवार मुण्डा है और माद्रा मुण्डा के वंसज है ,तो अपने ही किताब-झारखंड का इतिहास कुछ सुत्र कुछ संदर्म मे उन्हे क्योकर राजपुत करार दिए???
*बी पी केसरी सर ने जब शालपत्र के संपादक बीर भरत तलवार को दिए इंटरव्यु मे खुद स्वीकार कर रहे है कि खोरठा नागपुरी सदरी पंचपरगनीया के कूल मे और मूल मे कुड़माली भाषा ही है तो बाद मे उटपटाग बकने सच्चाई तो नही बदल जाएगी।
*डा श्रवन कुमार गोस्वामी के अनुसार #सदान या सदानी नामक शब्द किसी शब्दकोष मे नही पाए जाते है और इस शब्द का उल्लेख केवल नागपुरी भाषा मे ही देखी जाती है(झारखंडी जनजीवन-बी के मेहता-पृ-7)
*फादर पीटर शान्ती नवरंगी प्रश्न उठाते है कि सदान अगर मौलिक शब्द है तो झारखंड के बाहर इस शब्द का उपयोग क्यो नही होते?राजपुत ब्रम्हण ,सहित जिन जातियो को सदान कहा जा रहा है तो अन्य राज्यो मे भी इन्हे सदान कहा जाना चाहिए था।पर ऐसा नही कहा जाताहै क्यो?सीधा सा जवाब है -झारखंड मे आजादी के बाद आकर वसे लोगो को झारखंडी मूल निवाशी दिखाने के लिए #सदान शब्द को हाल फिलहाल गढा गया है।
*खोरठा शब्द का उपयोग भी झारखंडी जन को बाॅट कर रखने के लिए और अपमानित करने के लिए की जाती है।बी के मेहता-खोरठा शब्द की उत्पति -(खोर+ओठा) से हुई बताते है।अर्थ आप समझ सकते है।(झारखंडि जन जिवन -बी के मेहता ।पृ-9)
* तत्कालीन बिहार सरकार ने भारत सरकार के अनूमोदन से 1924मे छोटानागपुर मे पायी जाने वाली 96जातियो मे से मात्र 28जातियो को गैर आदिवासी जाति के रूप मे सिनाख्त की थी।उक्त सूचि मे-वेद्द,वेष्णव,बनिया,(अग्रवाल व्यास आदि)बंदावत,भूमिहार ब्रम्हण ,ब्राह्मण,बोद्ध, गंधवनिक,ईसाई(आदिवासी मूल को छोडकर)जैन, काहार, कायस्त,कोइरी ,मारवाडी, मुहामडन(शैयद पठान मुगल शेख आदि)राजपुत, सोनार, सोकियार,तेली वेश्य आदि।अर्थात इन लोगो को सदान कहा जा रहा है।तो केसरी जी उसमे जबरदस्ती झारखंडी मूल के लोगो को क्यो जोड़ रहे हो???
*रातु राजा जिसे आजकल नागवंशी राज कहा जा रहा है के राज्य मे वर्तमान राँची जिले के पाँच परगना तक ही सिमित था।(झारखंडि जन जिवन-बी के मेहता-पृ-17)शरत चन्द्र राय ने रातु जमीन्दारी को ही #मुण्डादेश कहा है पर उन्होने पाँच परगने के मुण्डा और मानकी के संबंध मे कुछ भी नही कहा है।क्योकि यह इलाका राँची जमीन्दारी से बाहर था।(मुण्डा एण्ड देयर कण्ट्री-शरत चन्द्र राय-पृ107,झारखंडी जनजीवन-बी के मेहता-पृ-19)
*#नाग शब्द का उपयोग जंगल मे रहने वाले उन जनजातियो के लिए किया जाता है, जिनका गण चिन्ह #नाग था।(झारखंडि जन जिवन-पृ-46)छोटानागपुर के मानकी माद्रा मुण्डा का गण चिन्ह या टोटेम पाण्डुविंग था।जिसे जानबुझकर संसकृतिकरण कर #पुण्डरिक नाग कर दी गयी ।(झारखंडी जन जिवन-बी के मेहता -पृ-48) झारखंड मे इतिहास खोजा नही गढा जा रहा है।ताकि झारखंड का असली इतिहास को छुपाया जा सके।सदान शब्द की रचना भी उसी खेल की एक कडी मात्र है।
सीधा सा अर्थ है कि #सदान शब्द झारखंडी जन, खासकर कुड़मी की रणनितिक शिकार करने और उलझाए रखने के लिए ही गढा गया एक शब्द है जो नागपुरी भाषा के अलावे कही उपयोग नही की जाती है और न ही किसी शब्दकोश मे देखी जाती है।
@rakesh mahato.