आलम जी की कलम से:-- वैसे तो मुस्लिम महिलाये बहुत नाजुक व खुबसूरत होती हैं और पर्दे में रह्ती हैं। लेकिन हाँ! झारखंड में अगर आप मुस्लिम महिलाओं को देखना चाहें !
तो, तीन चार छोटे- छोटे बच्चों को लिये भीख मांगती हुई, घरेलू कामगार, अस्पतालों की दाई, मेहतर, कार्यालयों की चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी, सब्जी- फल लिये फुटपाथों पर बैठी अपने निस्तेज कुपोषित सुखी हुई छाती से अपने दुधमुँहे पतले दुबले बच्चे को जबरन दूध पिलाती ,बोरा बिछाकर कड़ी धूप में भी टोकरी भर चुड़ियाँ लिये किसी खुबसूरत सुहागन या उनके पति के बाट जोहती, पीठ में बच्चा बांधकर खेतों में काम करती हुई, सर पे गोबर खाद, पानी का घड़ा या लकड़ी का बोझा ली हुई, कड़ी धूप या बारिश के बीच में भी टोकरी या झोला में कुछ सामानों को सर पे लिये "सब्जी..सब्जी लेबा हो.." "सिंगार- पतार.. सुंदर. सुंदर.." जैसे शब्दों की लयात्मक लड़ियोँ के साथ किसी मुहल्ले टोलों की गलियों में चिल्लाती- पुकारती हुई जरुर दिख जाएन्गी!!
है ना अच्छी बात!!