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लाइव विशेष : एक शख्स, जिसने बचपन में विकलांगता झेली, पिता की मौत के बाद माँ के साथ सड़क किनारे चूड़ियां बेचकर परिवार का पालन पोषण किया, कैसे बना एक कामयाब आईएएस अधिकारी ? जानिये कोडरमा डीसी की प्रेरणा दायक जीवनी :

देश में लाखों युवा सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी करते हैं। ऐसे में कई बार फेल होना उन्हें डराता भी है। पर सिविल सर्विस एग्जाम क्लियर करने वाले योद्धाओं की कहानी उनका हौसला बढ़ाती हैं। ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको सुनाने वाले हैं। ये एक दिव्यांग शख्स की कहानी है जो बचपन में अपनी माँ के साथ सड़क किनारे चूड़ियां बेचता था, पर अपने मजबूत इरादों से वो एक कामयाब आईएएस अफसर बना। इस शख्स के दिल पर चूड़ी बेचने पर अपना मजाक उड़ाने वालों के ताने दिल से लग गए थे। उसने ठान ली थी अफसर बनकर ही गांववालों को शक्ल दिखाउंगा।

इंसान मजबूत इरादे से किसी काम को करे तो दुनियां की कोई ताकत उसे हरा नहीं सकती। बड़ी से बड़ी परेशानियां इंसान के जज्बे के आगे बौनी साबित होती हैं। ऐसा जज्बा रखने वाले हैं आईएएस (IAS) रमेश घोलप जो अफसर बनने के बाद अपनी मां को सबसे पहले अपने सरकारी दफ्तर लेकर गए थे।

रमेश उन युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जो सिविल सर्विसिज में भर्ती होना चाहते हैं। रमेश को बचपन में बाएं पैर में पोलियो हो गया था और परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि रमेश को अपनी मां के साथ सड़कों पर चूड़ियां बेचना पड़ा था। रमेश ने हर मुश्किल को मात दी और आईएएस (IAS) अफसर बनकर दिखाया।

रमेश के पिता की छोटी सी साईकिल की दुकान चलाते थे। पिता की शराब की लत ने उनके स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति दोनों को कमजोर कर दिया। वे अस्पताल में भर्ती हो गए तो परिवार की सारी जिम्मेदारी मां पर आ पड़ी। मां बेचारी सड़कों पर चूड़ियाँ बेचने लगी, रमेश के बाएं पैर में पोलियो हो गया था लेकिन हालात ऐसे थे कि रमेश भी मां और भाई के साथ चूड़ियां बेचने का काम करते थे। पर रमेश के दिल में अफसर बनने की इच्छा था।

गांव में पढाई पूरी करने के बाद बड़े स्कूल में दाखिला लेने के लिए रमेश को अपने चाचा के गांव बरसी जाना पड़ा। वर्ष 2005 में रमेश 12 वीं कक्षा में थे तब उनके पिता का निधन हो गया। रमेश के पास स्कूल जाने का किराया भी नहीं हुआ करता था। पर शिक्षा को लेकर उनके अदंर जुनून था। वो विकलांग कोटे से कम किराए में बस से स्कूल जाते थे।

रमेश ने 12 वीं में 88.5 % मार्क्स से परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इन्होंने शिक्षा में एक डिप्लोमा कर लिया और गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षक बन गए। डिप्लोमा करने के साथ ही रमेश ने बीए की डिग्री भी ले ली। शिक्षक बनकर रमेश अपने परिवार का खर्चा चला रहे थे लेकिन उनका लक्ष्य कुछ और ही था।

रमेश ने छह महीने के लिए नौकरी छोड़ दी और मन से पढाई करके यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा दी लेकिन 2010 में उन्हें सफलता नहीं मिली।

मां ने गांव वालों से कुछ पैसे उधार लिए और रमेश पुणे जाकर सिविल सर्विसेज के लिए पढाई करने लगे। रमेश ने अपने गांव वालों से कसम ली थी कि जब तक वो एक बड़े अफसर नहीं बन जाते तब तक गांव वालों को अपनी शक्ल नहीं दिखाएंगे।

आखिर 2012 में रमेश की मेहनत रंग लायी और रमेश ने यूपीएससी की परीक्षा 287 वीं रैंक हासिल की। और इस तरह बिना किसी कोचिंग का सहारा लिए अनपढ़ मां-बाप का बेटा बन आईएएस (IAS) अफसर बनकर गांव लौटा। फिलहाल रमेश झारखंड के कोडरमा जिले में बतौर उपायुक्त तैनात हैं।

इस प्रेरणात्मक कहानी से सिविल सर्विस ही नहीं हर स्टूडेंट को हौसला मिलता है। अगर आपके इरादे मजबूत है और पूरी ईमानदारी से आप लक्ष्य को हासिल करने के लिए खुद को झोंक दे तो सफलता मिलती ही है।