आजकल मृत्युभोज के विरोध पर बहुत लिखा जा रहा है..मेरा मत अलग है..
मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है,
हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे ! आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा.. हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है..
इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों आपके बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं!..., ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे समबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल जोल का दूसरा माध्यम क्या है,.. दुख की घड़ी मे भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे..
हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे।
हा ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ. कौन कहता है की 10 आइटम परोसो..
मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ लेकिन अपनी परंपरा का कट्टर समर्थक हूँ।
कुछ मूर्खों की वजह से हमारे बाप दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं जो दूर दूर के रिश्ते नाते को एक जगह लाकर फिर से जान डालते हैं समय समय पर।
सुधारना हो तो लोगों को सुधारो जो आयोजन रिश्तों की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं,
हमारे बाप दादा जो परम्पराएं देकर गए हैं रिश्ते सहेजने के लिए उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाटो, वरना तरस जाओगे मेल जोल को,,,,, बंद बिल्कुल मत करो, समय समय पर शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो। ये संजीवनी है रिश्ते नातों को जिन्दा करने की।...