साठ के दशक में अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे जान ऍफ़ कैनेडी ,,,,,,,भारत में हमारे चचा जी को लगता था की कैनेडी उनके लंगोटिया यार है ,,,उन दिनों भारत में आधुनिक लड़ाकू विमान नहीं हुवा करते थे ,,,,,चीन ने भारत पे हमला कर दिया था ,,,,,,सो चचा जी ने बिना अपने मंत्री मंडल के राय मशवरे के कैनेडी को दो पत्र लिखे ,,,,,नेहरू की जीवनी लिखने वाले S Gopal ने इसे बेहद निराशाजनक कदम बताया था,,,,,उन दिनों भारत में हर मौसम में उड़ने वाले लड़ाकू जहाज नहीं थे ,,,,,सो नेहरू ने कैनेडी प्रशाशन को पत्र लिखा की वो कम से कम वो 12 सुपर सोनिक फाइटर के 12 लड़ाकू जहाज भारत की मदद के लिए भेजें ,,,,,इसके साथ उन्होंने दो बी -47 बम वर्षक लड़ाकू जहाज भी मांगे थे ,,,,,,लेकिन भारतीय पायलटों को तब इन जहाज़ों को उड़ाना नहीं आता था ,,इसे सीखने के लिए उन्हें अमेरिका जाना पड़ता ,,,,,,,,उन दिनों अमेरिका के विदेश मंत्री थे डीन रस्क ,,,,,और भारत में अमेरिका के राजदूत थे जान .के गैलब्रेथ ,,,,गैलब्रेथ के पास उस दिन दो तार आये ,,,दोनों ही तारों में नेहरू ने चीन से लड़ने के लिए अमेरिका के कैनेडी प्रशाशन से मदद मांगी थी ,,,,,,
आपको जान कर शायद आश्चर्य होगा की कैनेडी ने नेहरू की मदद करने से साफ़ मना कर दिया ,,उन्होंने नेहरू को वापस पत्र लिखा जिसमे ये कहा गया की चुकी ,,,भारत की अधिकाँश सेना पाकिस्तान के खिलाफ एक ऐसे मसले पर तैनात है जिसका फैसला जनमत संग्रह से होना तय है।,,,,,और अमेरिका और उसकी जनता का हित इसी में है की वो विश्व मंच पर पाकिस्तान की बात का समर्थन करे ,,,,,असल में कैनेडी कश्मीर मुद्दे की बात कर रहे थे ,,,,,,इसके साथ साथ कैनेडी ने नेहरू की गुट निरपेक्ष नीति पर भी सवाल उठाये ,,,,,,
कुल मिलकर ये मदद चाचा ने अमेरिका से उस चीन के खिलाफ मांगी थी जिसके साथ कुछ महीने पहले वो हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगा रहे थे ,,,,,,,
अमेरिका ने चाचा के पिछबाड़े पे लात मार कर भगा दिया ,,,और जब चचा को लगा की कोई मदद को नहीं आएगा तब विश्व में अपनी गुट निरपेक्षता को सही साबित करने और पहले हमला ना करने वाली निति का पालन करने के लिए भारत चीन युद्ध में वो खुद ही जनरल की भूमिका निभाने लगे ,,....सेना को कब हमला करना है कब नहीं जैसे संवेदनशील फैसले भी खुद लेने लगे ,,परिणाम ये हुवा की चीन युद्ध में बड़े पैमाने पे भारतीय सैनिक शहीद हुवे ,,,,,और स्विट्ज़रलैंड जितनी भारतीय भूमि चीन के कब्जे में चली गयी ,,भोले नाथ का कैलाश पर्वत चीन के पास चला गया ,,और जब चचा से सदन में पुछा गया की बताओ चीन ने हमारी जमीन कैसे कब्ज़ा कर ली तो चचा बोले की वहां तो धान का एक दाना भी नहीं उगता था ,,,वो बंजर भूमि थी ,,चली गयी तो क्या हुआ ,,,,,,???
आज इसी चाचा के पुत्री के नाती ,,,मोदी को बता रहे हैं की भारत की जमीन चीन कब्ज़ा रहा है ,,और भारत की विदेश निति कैसी होनी चाहिए ??,,,अमेरिका से संकट के समय मदद मांगी तो अमेरिका ने पिछबाड़े पे लात मार कर भगा दिया ,,,, आज वही अमेरिका भारत के साथ चीन के खिलाफ खड़ा है ,,,किसके नेतृत्व में ??? इसी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिसे पगलू गांधी सरेण्डर मोदी कह रहे हैं ,,,,,,आज मैं राहुल गाँधी को जब भी देखता हूं तो मुझे इण्डिया टीवी में रजत शर्मा के शो आप की अदालत में राम जेठ मालानी का वाक्तत्व याद आता है जब उन्होंने कहा था की राहुल गाँधी की योग्यता मेरे ऑफिस के चपरासी बनने की भी नहीं है ,,,,,अगर उनके नाम के आगे गांधी नहीं लगा होता तो आज सांसद तो दूर अपनी योग्यता के बलबूते वो चपरासी भी नहीं बन सकते है ,,,,,राहुल बाबा आत्ममंथन करिये थोड़ा अपने इतिहास को पढ़िए जैसे हम देशभक्त लोग पढ़ते है।
(बृज भूषण गुप्ता की पोस्ट से साभार)
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