गुलशन कौंडिल्य's Album: Wall Photos

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मत गिनाइए कि 20 के बदले 43...
हम एक साथ 20 खोए हैं और मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तुरंत उसे एक गणित में बदल कर सब उलटफ़ेर कर देती है। आख़िर क्यों और कैसे हम अचानक दूसरी तरफ़ एक बड़े आँकड़े को देखकर शहादत पचा ले रहे हैं।

अखबार की खबर के अनुसार, 43 सैनिक चीन के भी मारे गए हैं। हालांकि, इस खबर की पुष्टि, न तो हमारी सेना ने की है और न चीन ने। यह एएनआई की खबर है। एएनआई को यह खबर कहां से मिली, यह नहीं पता है। शहादत की भरपाई, दुश्मन देश की सैन्य हानि से नहीं आंकी जा सकती है।
साफ़ तौर पर समझिए, हमारे 20 जाँबाज़ शहीद हुए हैं।

इतना जान लीजिए चीन डरा हुआ है। भारत बीस है, चीन नहीं। सैनिक मोर्चे पर भी और कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत चीन पर भारी है और रहेगा। भारत में बसे चीन के समर्थक को यह बात समय रहते समझ लेना चाहिए। यह भी कि इन छः सालों में सिर्फ कूटनीतिक सफलता ही नहीं मिली है भारत को, सैनिक मोर्चों पर भी समृद्ध हुआ है भारत। नहीं जानते लोग तो अब से जान लें कोई हर्ज नहीं है। यह कि अटल बिहारी वाजपेयी ने तमाम खतरे और पाबंदियां भुगतते हुए भी परमाणु विस्फोट किया था तो पाकिस्तान जैसे मरियल देश के लिए नहीं, चीन के लिए किया था। और कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राफेल सौदा किया तो मरियल पाकिस्तान के लिए नहीं, चीन के ही लिए किया है। निश्चिंत रहिए कोरोना में अगर मोदी सरकार कुछ अव्यवस्थित दिखी तो सिर्फ इस लिए कि मोदी का सारा ध्यान बिलकुल इसी समय चीन पर केंद्रित हो गया था।
पंजाब में लौट रहे मज़दूरों का स्वागत हो रहा है तो चीनी सरहद पर चीनी सैनिकों की सनक भी उतारी जा रही है। यह सब अचानक नहीं हुआ है। कोरोना भले अचानक आया है पर चीनी चालबाजी तो अरसे से जारी है। भारत में सिर्फ पाकिस्तान समर्थक ही नहीं चीन समर्थक भी बहुतेरे हैं। कदम-कदम पर थाली में छेद करने के अभ्यस्त भी बहुतेरे हैं। सोशल मीडिया में कुछ टिप्पणियां देख कर लगता है कि पराजित भारत देखने की लालसा और अभिलाषा कितनी तीव्र है कुछ लोगों की। दुर्भाग्य कि उन की इस अभिलाषा और लालसा की प्यास बुझने वाली नहीं है। एक पुरानी कहावत का शब्द बदलते हुए कि, कोरोना और चीनी एक साथ मिलें तो पहले चीनी को मारिए, कोरोना को बाद में देख लीजिएगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने यही किया है। इस कहावत को चरितार्थ किया है। सवाल पूछना, सतर्क रहना बहुत ज़रूरी है। पर बाक़ी तय तो आप को ही करना है कि आप भारत के साथ हैं कि चीन के साथ।
भारत चीन सीमा पर जो कल रात को हुआ है वो महज एक झड़प नही थी यह एक पूरी साजिश थी भारत को लगातार भ्रम में रखकर भारत की जमीन हथियाने की.. चीन लगातार बातचीत का दिखावा करके अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था लेकिन हम उसकी चिकनी चुपड़ी बातों पर 1962 की तरह यकीन नहीं कर सकते।
तो हमारे सेना के जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देते हुए उन चीनीयों को आखिर पीछे जाने के लिए मजबूर कर ही दिया।
इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो, यह मामला दस पंद्रह दिन से चल रहा है और ऐसा भी नहीं कि, ये मामला दबा छुपा हो आप सभी से। डिफेंस एक्सपर्ट पिछले कई दिनों से चीनी सेना की लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर बढ़ रही गतिविधियों पर जो स्थितियां है उसके बारे में लगातार ट्वीट कर रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा और यह भी कहा कि, 60 वर्ग किमी चीन हमारी ज़मीन दबा चुका है।
गलवां घाटी के पास, आठ पहाड़ियों के छोटे छोटे शिखर जिन्हें फिंगर कहा जाता है, के पास यह सीमा विवाद है। सीमा निर्धारित नहीं है और जो दुर्गम भौगोलिक स्थिति वहां है उसमें सीमा निर्धारण आसान भी नहीं है तो, कभी हम, चीन के अनुसार, चीन के इलाके में तो कभी वे हमारे अनुसार, भारत के इलाके में गश्त करने चले जाते रहे हैं। लेकिन यह यदा कदा होता रहा है। सीमा निर्धारित न होने के कारण, यह कन्फ्यूजन दोनो तरफ है।

लेकिन जब चीनी सैनिकों का जमावड़ा उस क्षेत्र में बढ़ने लगा अन्ततः, चीनी सेना की मौजदगी, 7,000 सैनिकों तक की, वहां बताई जाने लगी। तब हमारी सेना ने अपने जवानों के शहादत के बाद हमने चीन को उनकी सीमा में खदेड़ दिया है और अपनी सीमाबंदी मुकम्मल तरीके से कर ली है तब तो यह एक उपलब्धि है अन्यथा यह शहादत एक गम्भीर कसक ही बनी रहेगी।

एक बात जान ले कि, युद्ध का मैदान शतरंज की बिसात नहीं है कि उसने हमारे जितने प्यादे मारे हमने उससे अधिक प्यादे मारे। युद्ध का पहला उद्देश्य है कि जिस लक्ष्य के लिये युद्ध छेड़ा जाय वह प्राप्त हो। यहां जो झड़प हुयी है वह अआर्म्ड कॉम्बैट की बताई जा रही है, जिसकी शुरुआत चीन की तरफ से हुयी है। हमारे आॅफिसर, सीमा पर पीछे हटने की जो बात तय हुयी थी, उसे लागू कराने गए थे। अब इस अचानक झड़प का कोई न कोई या तो तात्कालिक कारण होगा या यह चीन की पीठ में छुरा भौंकने की पुरानी आदत और फितरत, का ही एक, स्वाभाविक परिणाम है, यह तो जब सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी होगी तभी पता चल पाएगा।