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कोरोना वायरस इलाज में कारगार दुनिया की पहली "लाइफ सेविंग ड्रग" - डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) :-

- दुनियाभर में इस समय डेक्सामेथासोन की चर्चा है। कोरोना महामारी के बीच यह दवा पहली लाइफ सेविंग ड्रग बनकर उभरी है, जो नाजुक हालत में भर्ती कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा 35%तक घटाती है।

- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ताजा रिसर्च में इसकी पुष्टि की है। भारत में भी इसका इस्तेमाल कोरोनामरीजों पर किया जा रहा है, लेकिन लो-डोज के रूप में।

- विस्तार से जानते है :-

1. .क्या है डेक्सामिथेसोन और कब से हो रहा है इस्तेमाल?

- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेक्सामेथासोन एक स्टेरॉयड (स्टेरॉयड का इस्तेमाल कई तरह की इमरजेंसी में किया जाता है, चाहें एलर्जी का रिएक्शन हो या ब्लड प्रेशर कम हो जाए) है जिसका इस्तेमाल 1960 से किया जा रहा है।

- यह दवा सूजन से दिक्कत जैसे अस्थमा, एलर्जी और कुछ खास तरह के कैंसर में दी जाती है। 1977 में इसे डब्ल्यूएचओ ने जरूरी दवाओं की मॉडल लिस्ट में शामिल किया और ज्यादातर देशों में कम कीमत में मिलने वाली दवा बताया है।

- डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम ने डेक्सामिथेसोन की सफलता पर कहा, यह पहली दवा है जो कोरोना के ऐसे मरीजों की मौत का खतरा घटाती है जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है या वेंटिलेटर पर हैं।

- Dexamethasone का सूत्र :- C22H29FO5

2. कैसे हुई रिसर्च इस दवाई पे :-

- दरअसल यूनाइटेड किंगडम (U.K) में इस दवाई पे रिसर्च किया गया था ।

- U.K में कोरोना की दवाई बनाने के लिए ट्रायल चल रहा है जिसका नाम है "RECOVERY" (Randomised Evaluation of Covid-19 Drug) .

- अब इन्होंने कोरोना पॉजिटिव मरीज जो गंभीर अवस्था मे थे और जिन्हें ऑक्सिजन के लिए वेंटिलेटर की जरूरत थी उनमे से कुछ लोगो को बिना वेंटिलेटर दिए उन्हें यह दवाई दे दी और बाकी की लोगो को वेंटिलेटर पे लगा दिया और उन्हें यह दवाई नही दी ।

- बादमे नतीजा यह सामने आया के जिन व्यक्तियों को यह दवाई दी थी उनमे से 35% ठीक हो गए , लेकिन जिन्हें सिर्फ वेंटिलेटर पे रखा गया था उनमे से केवल 20% लोग ही ठीक हुए है ।

- मतलब बिना वेंटिलेटर के 35% लोग इस दवाई से ठीक हो रहे है ।

- हालांकि इससे पहले HCQ (Hydroxychloroquine) का नाम लिया जा रहा था ,लेकिन कोई वैज्ञानिक पुष्टि नही थी कि यह दवाई काम कर रही है के नही । इसलिए Dexamethasone को कोरोना के लिए दुनिया का पहला लाइफ सेविंग ड्रग माना गया है ।

3. कोविड-19 के मामले में कैसे काम करती है यह स्टेरॉयड ड्रग? :-

- ऑक्सफोर्ड की रिसर्च में सामने आया है कोविड-19 के मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति भी बनती है। इस स्थिति में रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम भी शरीर के खिलाफ काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।

- संक्रमित मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म के कारण जो इम्यून कोशिकाएं फेफड़ों की कोशिकाओं को डैमेज कर रही हैं, यह दवा उन्हें रोकने की कोशिश करती है। डैमेज हुई कोशिकाओं से जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व बन रहे हैं उनको कम करके फेफड़ों की सूजन घटाती है।
NOTE :- यह दवा फेफड़ों में गंभीर कोरोना संक्रमण वाले मरीजों को दी जाती है । कोरोना के अगर सामान्य लक्षण ही है तो यह दवा काम नही करेगी ।

4. भारत में कौन बनाता है डेक्सामेथासोन ? :-

- देश में डेक्सामेथासोन की सबसे बड़ी सप्लायर अहमदाबाद की फार्मा कम्पनी "जायडस कैडिला" है। कम्पनी हर साल सिर्फ इस दवा से 100 करोड़ रुपए का टर्नओवर करती है।

- कम्पनी के ग्रुप चेयरमैन पंकज पटेल का कहना है कि देश में पर्याप्त मात्रा में इस दवा की सप्लाई की जा रही है।

- पिछले 40 साल से इसका इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जा रहा है। यह काफी सस्ती दवा है। यह दवा (Tablet) और इंजेक्शन दोनों तरह से उपलबध है। इसके एक इंजेक्शन की कीमत 5-6 रुपए है।

- इंडियन फार्मास्युटिकल्स एलियांस के जनरल सेक्रेट्री सुदर्शन जैन के मुताबिक, देश में डेक्सामिथेसोन का 83% मार्केट शेयर फार्मा कम्पनी जायडस केडिला के पास है।

- महाराष्ट्र के अस्पतालों में पहले ही इस ड्रग का इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों पर किया जा रहा ।
NOTE:- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्पष्ट किया है कि डेक्सामेथासोन कोविड-19 का इलाज या बचाव नहीं है और इसका इस्तेमाल डॉक्टरों की निगरानी में सिर्फ बेहद गंभीर मरीजों पर किया जाना चाहिए जिन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है।
- डॉक्टर की सलाह के बिना इस दवाई का किसी प्रकार से सेवन न करे ।

stayhome#like#share#current affairs by ajit singh