राज सिंह's Album: Wall Photos

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वो भी क्या दिन थे जब हम बचपन मे थे बगल में जयकरन बाबा के नीम के पेड़ पर झूला पड़ता था ट्रैक्टर के हेंगा या बड़का पटरा मोटका बरहा में बांध के उसके बाद दो पतले पतले फुर्तीले लड़के दोनो तरफ पटेंग मारने के लिए खड़े होते और लड़कियां बीच मे बैठती थीं थोडीके देरी बाद झलुआ हवा से बात करने लगता उसके बाद लडकिया कजरी गातीं , पिया मेहंदी मंगा द मोती झील से जाके साइकिल से ना, ये वाला गाना जरूर गाती थीं बिना इस गाने के झलुआ क मज़ा नही आता था, और मिर्ज़ापुर कईला गुलजार हो कचौड़ी गली सुन कईला रजऊ ई वाला अलगे माहौल बनाता था और कभो कभो आरराय के झलुआ टूट जाता था कौनो का हाथ छिलाता था कौनो क गोड़ कौनो क ठेहुन फुट जाता था तब्बो कुल मिला धुर माटी पोत के फिर तैयार रसरी पगहा बांध के फिर झलुआ चालू और लइका लोग बीच्चे में बैठेगा उल्टी आने पर बोलेगा नही तो अगला बार नही से झुलने दिया जाएगा और गाँव क भउजी लोग भी जब देखती थीं कि संझा हो गया एक्को मरद मनसेधू नही दिख रहे हैं तब उहो घूँघट काढ़ के आ जाती थी फिर वही कजरी झोर के गाती थीं, अब तो वही भउजी लोग अपने कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले लइका लोग से कहती हैं:- स्टे होम डोंट गो टू आउटसाइड कितना डस्ट है उधर.....!
ई आज का लइका कुल का जियेगा रे बचपन ....