S SIDHU's Album: Wall Photos

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#नालंदा_स्कैम!!!!
** मौनी बाबा मनमोहन सिंह की कारगुजारी ***
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मनमोहन सिंह उर्फ मौनी बाबा को मोदी जी ने क्यों कहा था कि मनमोहन सिंह तो बाथरूम में भी रेनकोट पहन कर नहाने की कला जानते हैं।
इस घटनक्रम को जानेगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा तथाकथित ईमानदार मनमोहन सिंह कितना बड़ा खिलाड़ी था।

आखिर अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे भारत सरकार की आर्थिक नीतियों की इतनी आलोचना या दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी पर विष-वमन क्यों करते रहते हैं ?

अगर आप भी अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं तो ध्यानपूर्वक पढ़िए और जानिये क्यों ....

वर्ष 2007 में जब नेहरू-गांधी परिवार के सबसे वफादार "डॉ मनमोहन सिंह" प्रधानमंत्री पद से अपनी शोभा बढ़ा रहे थे तब उन्होंने एक समय बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की "महायोजना" पर काम शुरू किया (महायोजना क्यों कह रहा हूँ आगे स्पष्ट होगा)

डॉ मनमोहन सिंह ने नोबल पुरस्कार विजेता "डॉ अमर्त्यसेन" को असीमित अधिकारों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का प्रथम चांसलर नियुक्त किया। उन्हें इतनी स्वायत्तता दी गयी कि उन्हें विश्विद्यालय के नाम पर बिना किसी स्वीकृति और जवाबदेही के कितनी भी धनराशि अपने इच्छानुसार खर्च करने एवं नियुक्तियों आदि का अधिकार था । उनके द्वारा लिए गये निर्णयों एवं व्यय किये गये धन का कोई भी हिसाब-किताब सरकार को नहीं देना था ।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि छुपे रुस्तम मनमोहन सिंह और अमर्त्यसेन ने मिलकर किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसों से भयंकर लूट मचाई ? वो भी तब जबकि अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे ही 5 लाख रुपये का मासिक वेतन ले रहे थे जितनी कि संवैधानिक रूप से भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, रक्षा सेनाओं के अध्यक्षों, कैबिनेट सचिव या किसी भी नौकरशाह को भी दिए जाने का कोई प्रावधान ही नहीं है ।
इतना ही नहीं अमर्त्यसेन को अनेक भत्तों के साथ साथ असीमित विदेश यात्राओं और उस पर असीमित खर्च करने का भी अधिकार था ।
कहानी का अंत यहीं पर नहीं हुआ बल्कि उन्होंने मनमोहनी कृपा से 2007 से 2014 की सात वर्षों की अवधि में कुल 2730 करोड बतौर चांसलर नालंदा विश्वविद्यालय खर्च किये.... आपकी आंखें फटी रह गयी न ... विश्वास नहीं हो रहा न कि मनमोहन सिंह ईमानदारी के चोंगे में कितने बड़े छुपे रुस्तम थे ?
चूंकि यूपीए सरकार द्वारा संसद में पारित कानून के तहत अमर्त्यसेन के द्वारा किये गये खर्चों की न तो कोई जवाबदेही थी और न ही कोई ऑडिट होना था और न ही कोई हिसाब उन्हें देना था इसलिए देश को कभी शायद पता ही न चले कि दो हज़ार सात सौ तीस करोड़ रुपये आखिर गये कहाँ ?

राफेल राफेल चिल्लाने वाले राहुल और रंक से राजा बने दर्जाप्राप्त भूमाफिया रॉबर्ट वाड्रा की धर्मपत्नी प्रियंका वाड्रा की पारिवारिक विरासत ही है कानूनी जामा पहना कर संगठित लूट की ताकि कानून के हाथ कितने भी लंबे हो जायँ पर उनका कुछ न बिगड़े ।
ऐसी ही संस्कृति में पलने बढ़ने के कारण दोनों भाई-बहनों में कोई आत्मग्लानि का भाव है ही नहीं बल्कि आंखों में बेशर्मी की चमक हो जैसे...किस मुंह से ये गरीब, दलित, किसान और पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं !! निपट ढोंग है ये ।
अभी कहानी खत्म नहीं हुई, पिक्चर अभी बाकी है -
अमर्त्यसेन सेन ने जो नियुक्तियां कीं उसपर भी कानूनन कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता । उन्होंने किन किन की नियुक्तियां कीं ... आइये ये भी जान लेते हैं -
प्रथम चार नियुक्तियां जो उन्होंने कीं वो थे -
1. डॉ उपिंदर सिंह
2. अंजना शर्मा
3. नवजोत लाहिरी
4. गोपा सब्बरवाल

..... कौन थे ये लोग
... ? ? जानेंगे तो मनमोहन सिंह के चेहरे से नकाब उतर जायेगा ।
डॉ उपिंदर सिंह मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी पुत्री हैं और बाकी तीन उनकी करीबी दोस्त और सहयोगी ।
इन चार नियुक्तियों के तुरंत बाद अमर्त्यसेन ने जो अगली दो नियुक्तियां कीं वो गेस्ट फैकल्टी अर्थात अतिथि प्राध्यापक की थी और वो थे -
1. दामन सिंह
2. अमृत सिंह
.....गोया ये कौन थे ?
पहला नाम डॉ मनमोहन सिंह की मझली पुत्री और दूसरा नाम उनकी सबसे छोटी पुत्री का है ।
और सबसे अद्वितीय बात जो दामन सिंह और अमृत सिंह के बारे है वो ये कि ये दोनों "मेहमान प्राध्यापक" अपने सात वर्षों के कार्यकाल में कभी भी नालंदा विश्वविद्यालय नहीं आयी ... पर बतौर प्राध्यापक ये अमेरिका में बैठे बैठे ही लगातार सात सालों तक भारी-भरकम वेतन लेती रहीं ।
उस दौर में नालंदा विश्वविद्यालय की संक्षिप्त विशेषता ये थी कि -
विश्विद्यालय का एक ही भवन था, इसके कुल 7 फैकल्टी मेम्बर और कुछ गेस्ट फैकल्टी मेम्बर (जो कभी नालंदा आये ही नहीं ) ही नियुक्त किये गये जो अमर्त्यसेन और मनमोहन सिंह के करीबी और रिश्तेदार थे । विश्विद्यालय में बमुश्किल 100 छात्र भी नहीं थे और न ही कोई वहां कोई बड़ा वैज्ञानिक शोध कार्य ही होता था जिसमे भारी भरकम उपकरण या केमिकल आदि का प्रयोग होता हो ।
फिर वो 2730 करोड़ रुपये गये कहाँ आखिर ?
मोदी जब सत्ता में आये और उन्हें जब इस कानूनी लूट की जानकारी हुई तो अमर्त्यसेन के साथ साथ मनमोहनी पुत्रियों को भी तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

#आर्यवर्त
- प्रदीप ताम्हणकर