सिंह मनोज's Album: Wall Photos

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पुरुष की शक्ति उसके हाथों में होती है। वह चाहे तो पूरे विश्व को अपनी हथेली में उठा ले। मात्र छह पुरुषों ने ठान लिया तो उजाड़ पड़े खांडवप्रस्थ को अपने हाथों से सुन्दरतम इंद्रप्रस्थ बना दिया। अयोध्या से दो राजकुमार जब बनवास को निकले तो उनके पास कुछ नहीं था। बस दो बलशाली भुजाएं थीं, और किसी भी शक्ति से टकरा जाने का साहस था। उन दो भाइयों के उन्हीं चार हाथों ने समूची अत्याचारी राक्षस जाति का नाश कर दिया। यह पुरुष के हाथों की शक्ति थी।
स्त्री के चरण समृद्धि के प्रतीक हैं। सुख के, वैभव के, सृजन के... आप ने देखा होगा दीपावली के दिन माताओं को घर की चौकठ से पूजा घर तक चरणों की छाप अंकित करते... नववधू जब पहली बार ससुराल में उतरती है तो चौकठ पर आलता से भरा थाल रखा जाता है, और वह उसमें पैर डाल कर अपने पैरों की छाप छोड़ते हुए पूजाघर तक जाती है। वह जब एक घर से निकल कर दूसरे घर में उतरती है तो उस छोटे से परिवार की ही सही, पर रानी बन कर उतरती है।
एक अदृश्य शक्ति होती है जो इन दोनों को एक साथ जोड़ती है। वह शक्ति है धर्म... वह शक्ति है पवित्रता की, एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण की, वह शक्ति है एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास की... जिसे हम प्रेम कहते हैं, वह वस्तुतः इसी पवित्रता, समर्पण और विश्वास का मिलाजुला भाव है। धर्म को धारण कर जब ये दोनों शक्तियां साथ आती हैं, तो सृजन होता है। सरल भाषा में कहें तो घर बसता है। बिना धर्म के ये दोनों शक्तियां साथ आएं तो बसे बसाए घर उजड़ भी जाते हैं।
कभी आपने सोचा है कि घर में शादी-ब्याह तय होते ही सीता-राम या गौरी-शंकर के गीत क्यों गाये हैं? ताकी जब दो शक्तियां एक दूसरे का हाथ थामें तब वातावरण में धर्म तैरता रहे... हमारे पूर्वज जानते थे कि महत्वपूर्ण देह नहीं है, महत्वपूर्ण धर्म है। नर और मादा सृष्टि की हर जाति में होते हैं, और वे साथ आ कर सृजन भी करते हैं। विपरीत लिंग के प्रति आसक्ति तो उनमें मनुष्यों से कई गुना अधिक होती है। धर्म ही है जो मनुष्य को उनसे श्रेष्ठ बनाता है।
इस तस्वीर को बनाने वाले के भाव सचमुच अद्भुत हैं। पुरुष ही हथेली में स्त्री के चरण होने का अर्थ वस्तुतः समृद्धि का होना है। वह समृद्धि जिसे हर पुरुष अपने जीवन में देखना चाहता है। धनबल, जनबल, शौर्य, सामाजिक प्रतिष्ठा, स्नेह...
वैसे भी पुरुष का सर्वश्रेष्ठ शौर्य है स्त्री के लिए सुरक्षित और सुखमय वातावरण निर्मित करना... जिस राजा के राज्य में स्त्रियां आधी रात को भी निर्भय हो कर निकल सकें, वही राजा श्रेष्ठ होता है। जिस पुरुष की स्त्री निर्भय हो कर, सर उठा कर, पूरे आत्मविश्वास से घूम सके उसी की प्रतिष्ठा सच्ची है। गांव की कुछ स्त्रियाँ अब भी अभद्रता करने वाले पर पुरुष को धमका देती हैं कि "जानत नइखे कि केकर मेहरारु हईं, जान जइहें त फार दीहें..." (जानते नहीं हो कि किसकी पत्नी हूँ! वह जान गया तो फाड़ देगा तुमको...) जिस पुरुष की स्त्री इतने घमण्ड से बोल सके, वही सचमुच का हीरो होता है।
आज किसी मित्र ने कहा कि परिस्थितयां दूषित हैं, प्रेम नहीं लिखा जा सकता। मुझे लगता है जब परिस्थितयां दूषित हों तो केवल प्रेम ही लिखा जाना चाहिए। जय हो...