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परिणामात्।।१।४।२७।।
श्रुति में उसके जगत् रुप में परिणत होने का वर्णन होने से यही मानना चाहिये कि वह ब्रह्म ही इस जगत् का कर्ता है और वह स्वयं ही इस रुप में बना है।
व्याख्या=तैत्तिरीयोपनिषद २।६ में कहा है कि ' तत्सृष्ट्वा तदेवानु प्राविशत्। तदनुप्रविश्य सच्च त्यच्चाभवत्।