हिन्दू समाज में चार धामों का महत्त्व सर्वोपरि बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि चार धाम की यात्रा कर ली तो मोक्ष मिल जायेगा. इन्ही चार धामों में से एक पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा की भव्यता और दिव्यता किसे नहीं सुहाती है।
यह उत्सव पारंपरिक रीति के अनुसार बड़े ही धूमधाम से आयोजित किया जाता है. अगर इसकी तिथि की बात करें तो, रथ उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से शुरू हो कर शुक्ल एकादशी तक चलता है. प्रचलित कथाओं के अनुरूप, इस रथ यात्रा में भगवान श्री कृष्ण जिन्हें भगवान जगन्नाथ भी कहते हैं, उनके रथ के साथ-साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी बनाया जाता है।
ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाये जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं. इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है।
इतनी बड़े उत्सव का प्रबंधन भी अपने आप में अनुपम है, क्योंकि इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है. रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है।
इस आध्यात्मिक अवसर के प्रयोग हेतु जब ये तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब 'छर पहनरा' नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है, जिसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं तथा ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं। भगवान जगन्नाथ की इसी लीला को देखने विश्व भर से हिन्दू समुदाय के लोग पूरी पहुँचते हैं तथा इस आध्यात्मिक-यात्रा का लाभ उठाते हैं।
इस अवसर का थोड़ा विस्तार से वर्णन करते हैं तो रथ यात्रा महोत्सव में पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खींच कर लाया जाता है।
इसके बाद दूसरे दिन रथ पर रखी जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि पूर्वक उतार कर इस मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्री जगन्नाथ जी यहीं निवास करते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी की यात्रा की जाती है, जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं. इस दौरान पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खींच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है. मंदिर तक लाने के बाद प्रतिमाओं को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है।
कहते हैं जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान हो जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष-प्राप्ति की बात भी कही गयी है. जो भी हो, भक्तों में उत्साह, उमंग और अपार श्रद्धा का संचार दिख जाना इस अवसर की भव्यता आप ही बता देता है. वैसे तो जगन्नाथ मंदिर और यात्रा के बारे में कई पौराणिक कथाएं है।
और उन्हीं में से एक के अनुसार द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया. इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं। हिन्दुओं की आस्था का एक केन्द्र भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ पुरी का मंदिर भी है, जो 10वीं शताब्दी में निर्मित है और इतिहासकारों के अनुसार मन्दिर का निर्माण राजा इन्द्रद्विमुना ने कराया था।
बेहतरीन कला का नमूना पेश करता ये मंदिर अपनी शानदार चमक और आकर्षण के साथ, आपको प्राचीन युग की भव्यता का दर्शन कराता है. मंदिर की ऊंचाई 65 फुट है और इसकी दीवारों पर भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करती हुयी उत्कृष्ट कलाकृति उकेरी गयी है. ये सब और अन्य कई कारक हर साल लाखों श्रद्धालुओं को जगन्नाथ मंदिर की ओर आकर्षित करते हैं।
वैसे तो साल भर देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं लेकिन रथ महोत्सव पर पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है. बताते चलें कि जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई भी है।
यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है. इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं. इस प्रसाद में दाल-चावल के साथ कई अन्य चीजें भी होती हैं जो भक्तों को बेहद कम कीमत पर उपलब्ध कराई जाती है. नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद यहां विशेष रूप से मिलता है।
एक और बात जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिन्दू लोगों का प्रवेश वर्जित है और विदेशी पर्यटकों को भी केवल मंदिर परिसर में आने की इजाजत हैं गर्भ गृह में नहीं. इसके पीछे वहां की पण्डे-पुरोहितों द्वारा बनाये गए नियम ही हैं, जो सालों से परंपरा की रूप में निभाए जाते हैं। हालाँकि, आने वाले दिनों में अगर कोई ऐसी मांग करता है तो बदलाव की राह भी दिख सकती है।
खैर, गर्भ-गृह तो एक आस्था का विषय मात्र है ओर इस आध्यात्मिक स्थल का असल लाभ तो इसकी भव्यता देखते ही बनती है. आध्यात्म, टूरिज़म का बेहतर स्थल बन कर आज भी परंपरा को निभाने वाला स्थान है श्री जगन्नाथपुरी!
तो अगली बार अगर आपको भी मौका मिले तो उड़ीसा के पूरी शहर में हर साल आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा में जरूर शामिल हों और अपने हाथों से भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य जरूर प्राप्त करें, साथ ही इससे सम्बंधित दर्शनीय-स्थलों को देखना न भूलें