मित्रों आज गुरुवार है, गुरुमहाराज जी का दिन है। पहले गुरुमहाराज जी की वंदना करेगें, फिर आपको गुरु भक्ति महिमा की बतायेगें!!!!!!!!!
*बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
भावार्थ:-मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥
सत्संग में सन्तजन जी समझते हुए कहते है हर एक व्यक्ति पूजा-पाठ, भक्ति तो करता है कोई अलग-अलग यज्ञ याज्ञ करता है को कुंडलिनी साधना करता है, जप-तप तो कोई ध्यान करता है फिर भी किसी को ईश्वर मिलते नही है, किसी को आत्मा का साक्षात्कार नही होता है!
कोई कर्म योग करता है तो कोई ध्यान योग करता है परंतु सब से उत्तम है "गुरु भक्ति योग" और उससे भी उत्तम है "सुर्त शब्द योग" परंतु सुर्त शब्द योग को समझने के लिए गुरु भक्ति योग को समझना होगा यदि कोई साधक गुरु भक्ति योग समझ जाता है तो पल बर के लिए भी भक्ति से वंचित नही रहता है, भक्ति किये बिना अपने गुरुदेव, गुरु सेवा, गुरु ज्ञान के बिना जी नही सकता है!