हम लिख के देंगे किरान्ति
हम छाप के देंगे किरान्ति
ढपली बजा के देंगे किरान्ति...
ये वामी-कामी
चिल्लाते रहेंगे किरान्ति पर
जब आएगी असल क्रान्ति
तो झंडे में छपा हँसिया
बूमरेंग बनकर
धंस जाएगा इनके गले में
गेहूं की दो बालियां
चीथड़े उड़ा देंगी
इनके स्वर-यंत्रों के....!
जब आएगी असल क्रान्ति
तब चे ग्वेरा की टें भी न निकलेगी
माओ-स्टालिन सिमट जाएंगे
दीवार पर चिपके मृत घोंघे के खोल में
और दीवार पर लिखे नारे
हरी काइयों से पट जाएंगे...!
जब आएगी असल क्रान्ति
तब लिबरल गैंग
किसी वेनेजुएलियन की सूखी छाती से
निचोड़ने लगेगा दो बूंद खुराक
तब भी अपनी ही स्त्री को
सजाएगा बाजार में...
जब आएगी असल क्रान्ति
केसर के खेत रंग जाएंगे खून से
मालाबार के नारियलों में
भरने लगेगा मवाद...
वेल्लियार(पेरियार) नदी बन जाएगी -
उबलता लावा
डल झील कब्रगाह..
जब आएगी असल क्रान्ति
तब पता चलेगा कि,
पसीने का रंग
आंसुओं का स्वाद कैसा होता है,
तब पता चलेगा कि
अनाज का भाव
प्राणी की जिन्दगी से कहीं कम नहीं होता
राष्ट्र की सीमाएं देती हैं सुरक्षा
सैनिक प्रहरी बन थपथपाते हुए
नींद का करता है सुरक्षित इंतजाम
धर्म जीवंत रखता है राष्ट्र को....
जब आएगी असल क्रान्ति
तुम्हारी नकली किरान्ति घुस जाएगी
मृत घोंघे के खोल में....