श्रीमद्भागवत महापुराण में अनेक लोगों को विषाद हुआ... तब उन लोगों ने क्या किया?
सीधा सा उत्तर है... समर्थवान संत चरणों का आश्रय लिया।
महात्म्य कथा के क्रम से कुछ उदाहरण देखिए:-
1- आत्म देव को विषाद हुआ और तुंगभद्रा नदी के तट पर एक संत का सत्संग मिला।
2- नारद जी को विषाद हुआ और सनकादि ऋषियों का सत्संग मिला।
3- कृष्ण द्वैपायन व्यास जी को विषाद हुआ और नारद जी का सत्संग मिला।
4- नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों को विषाद हुआ और श्री सूत जी का सत्संग मिला।
ऐसे ही श्री गरूड़ जी को विषाद हुआ और काकभुशुंडी जी का सत्संग मिला।
ऐसे ही... महाभारत में अर्जुन को विषाद हुआ और कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं.. के द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता का सत्संग मिला।
ऐसे ही अनेक प्रसंग हैं जब घनघोर विषाद की अवस्था में अनेक लोगों ने संत चरणों का आश्रय लिया।
अब वामपंथियों के प्रपंच में, भोगवादी राजनीति के प्रभाव में, अत्यधिक लोभ, ईर्ष्या के कारण तुमने संतों को किनारे लगा दिया, अच्छे संतों की खोज बंद कर दी, संतों के विकास की यात्रा को अवरुद्ध कर दिया... तब तुम्हारे विषाद को दूर करने का माध्यम भी समाप्त हो गया।
पहले विषाद होता था तब लोग संतों के आश्रय में जाते थे, विषाद योग का फलन सन्यास होता था। अब अच्छे संतों में रुचि नहीं रही, या संतों के पास जाना तुम्हारे स्टेटस सिंबल के खिलाफ बना दिया गया... तो अब जब विषाद होता है तुम नशा करने लगते हो, शराब, अफीम, ड्रग्स, और भी बहुत कुछ का नशा अथवा किसी साइकाइट्रिस्ट के पास जाते हो और विषाद को अवसाद बना लेते हो। तब भी कुछ लाभ नहीं होता तो आत्महत्या कर लेते हो, जैसे सुशांत सिंह ने की थी। वामपंथी, भोगवादी, अज्ञान से भरी हुई जीवनशैली के व्यामोह ने सुशांत सिंह के एक अच्छा संत बनने का मार्ग नष्ट कर दिया। अच्छे संतों के पास न जाने का एक परिणाम यह भी हुआ कि नकली संतों के लिये जमीन तैयार हो गई, ये नकली संत भी तुम्हारी ही तरह भोगवादी, धनवादी हो गए।
अब भी समय है, बहुत अच्छे संत हैं भारत भूमि में, अभी माँ भारती की कोख बंजर नहीं हुई है... खोजिए अच्छे संतों को, जाईये उनके पास, समाधान करिए अपनी समस्याओं का, मन भर गया हो संसार से तो उन संत के श्री चरणों में सेवा करिए, संतों को भी आवश्यकता है आप सबकी। आत्महत्या से अधोगति ही होगी।
मार्ग अवश्य निकलेगा।
Naman Krishna Bhagwat Kinker