आहिस्ता आहिस्ता हिंदु मानस दैव मानस धारण कर रहा है ओर हर एक सनातनी की मानस प्रकृति विधरमि वणॅशंकर नास्तिक को के प्रति ह्दय मे आक्रोश के साथ घृणा इकट्ठी कर रही है,,,यही सनातन हींदु की घृणा मानस शक्ति इस महाकाल मे महाकाली रूद्र रूप धारण कर रही है,,,जब ये संपूर्ण रूप धारण कर लेगी तो दैत्य राक्षस असुर का विनाश अवश्य करेगी,,,विधरमि वणॅशंकर नास्तिकको का शिर काटी रूंढ माला अवश्य धारण करेगी,,ये वैष्णवी महाकाली चामुंडा ही होगी,,,कोई अंधेरे मे ना रहे,,इस देव दानव युद्ध काल मे अपना पक्ष स्पष्ट ओर निर्णायक करले,,,देव या दानव??? जब धमॅ संस्कृति को फिर से स्थापित करने का युद्ध देव दानव मे होता है तब अथॅ तंत्र को नही देखा जा सकता,,,तब दया करूणा की देवी भी रौद्र रूप धारण करती है,,एक ही लक्ष्य रहता है दानवो का नाश,,,अध्यात्म शक्ति भी युद्ध करती है,,,भारत की सनातन संस्कृति आज एक निणाॅयक मोड पर खडी है,,,ओर वो है,,, युद्ध ही कल्याण,,नपुंसक बनकर खडे न रहो,,,इस युद्ध का कोई न कोई हिस्सा बनके युद्ध करने का फैसला लिया जाय,,पक्ष पार्टी जाती वणॅ ज्ञाती संप्रदाय कोई नही बचेगा,,,जो सनातन संस्कृति का विरोधी होगा,,,कोई साधु संत संन्यासी कथावाचक या ओर कोई भी चमरबंधी भी नही बचेगा जो सनातन संस्कृति के बाहर पांव रखने वाला,,,,तो निणाॅयक भुमी पर आ जाओ,,,देव या दानव,,,देवत्व मे थोडा त्याग है ओर दानवता मे भोग है,,,निणॅय आपको करना है,,,समय रहते जागो, , , ,
Tagged: