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#निर्जला_एकादशी

एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। किसी वर्ष में जब अधिकमास या मलमास आ जाता है तो दो एकादशी और जुड़ जाती हैं। इस तरह उस वर्ष में कुल 26 एकादशी हो जाती हैं। यूँ तो सभी एकादशी महत्‍वपूर्ण होती हैं लेकिन न‍िर्जला एकादशी का अपना एक व‍िशेष स्‍थान है। मान्‍यता है क‍ि इस एकादशी का सफलतापूर्वक व्रत करने से सभी 24 एकादश‍ियों का फल म‍िल जाता है। निर्जला एकादशी प्रत्येक वर्ष ज्‍येष्‍ठ मास में शुक्‍ल पक्ष की एकादशी त‍िथि को पड़ती है। इस एकादशी में जल ग्रहण करना भी वर्जित है। यही कारण है क‍ि इसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक शास्‍त्रों में इसे भीमसेन एकादशी के नाम से भी जानते हैं।

न‍िर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त और व‍िध‍ि :

निर्जला एकादशी आज 1 जून को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से आरंभ हो चुकी है जो कल 2 जून को दोपहर 12 बजकर 04 मिनट पर समाप्त हो जायेगी। इसलिए इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा दोपहर 12 बजे तक कर लेनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्रत रखने वाले को गंगा दशहरा वाले दिन से ही तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए और लहसुन व प्याज मुक्त भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। रात में भूमि पर शयन करके अगले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सबसे पहले प्रभु श्रीहरि का स्मरण करें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत होकर स्‍नान के जल में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्‍नान करें और पीले वस्त्र धारण करें। फिर सूर्य देव को अर्घ्य दें।

ऐसे करें निर्जला एकादशी की पूजा :

सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा पीले पुष्प, फल, अक्षत, दूर्वा और चंदन से पूजा करें। फिर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें। इसके बाद निर्जला एकादशी की कथा का श्रवण करके भगवान विष्णु की आरती करें। इस दिन बिना जल ग्रहण किये उपवास रखने का विधान है। द्वादशी के दिन शुद्ध होकर पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग लगाएं। भोग में कुछ मीठा अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद पहले प्रसाद सबको बांट दें। तत्पश्चात ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर स्‍वयं प्रसाद ग्रहण करें। ध्यान रहे, व्रत खोलने के बाद ही आपको जल का सेवन करना है।

इसे भीमसेन एकादशी क्यों कहते हैं ?

इसकी कथा म‍िलती है क‍ि महर्षि व्यास ने जब पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करवाया तो महाबली भीम ने निवेदन किया, हे महर्षि आपने जो प्रत्येक मास में प्रत्येक पक्ष की एकादशी वाले दिन उपवास रखने की बात कही है तो मैं एक दिन तो क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट में जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं इस एकादशी के पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा? इस पर महर्षि व्यास ने महाबली भीम की समस्या का निदान करते हुए और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा, नहीं कुंतीनंदन! धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको सिर्फ धारण ही नहीं करवाता अपितु उसके योग्य साधन और व्रत-नियमों की सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः तुम ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी नाम की एक ही एकादशी का व्रत कर लो। इससे तुम्हें पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जायेगा। इसके फलस्वरूप तुम निःसंदेह इस लोक में सुख, वैभव और यश प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति भी करोगे।

महर्षि व्‍यास के इस आश्वासन से वृकोदर भीमसेन निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस सर्वश्रेष्ठ निर्जला एकादशी को इस लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्‍यता है क‍ि इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करता है। उसे जीवन में कभी भी क‍िसी बात की कमी नहीं होती। हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है।

हरि:ॐ