Dheeraj Arya's Album: Wall Photos

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#एक #भावपूर्ण कथा-

मुंन्डा (हमारी गाय का नाम) सोलह बरस की हो चुकी थी। जब भी जंगल से चर कर आती तो आवाज देकर बताने का प्रयास करती कि- मैं आ गयी। मुझे मेरे खुंटे पर बांध दो।
पिछले दस बारह साल से लगातार दुध दे रही थी। सुबह सुबह जंगल छोड़ के आना पड़ता था बस। वापस खुद आती थी। कभी भी किसी गांव वाले ने शिकायत ना कि होगी कि तुम्हारी गाय ने हमारे खेत/ खलियान मे घुस कर ये नुकसान कर दिया। चार पाँच बछडे भी हुए। पर धरती पर आठ दस महीने से ज्यादा नही टिक पाए। अब वह बुढी हो चुकी थी। गर्भधारण नही कर पायी। धीरे धीरे दुध घटते घटते बंद ही हो गया।
अक्टूबर मे मैं छुट्टी लेकर घर गया। संयोगवश मेरे पिताजी भी घर आ रखे थे। शाम को सुर्यदेव आकाश रेखा (skyline) को पार कर आराम करने हेतु प्रयासरत थे। आंगन मे बैठे बैठे जाने कहां से घुमते हुए चर्चा मुंन्डा पर पहुंची। मां बोली कि अब दुसरी गाय लानी पड़ेगी। ये तो दुध देने से रही। मैंने कहा कि ठीक है, नयी गाय ले आते हैं। मां बोली कि फिर मैं दो दो गाय कैसे पालुंगी। इतना तो घास भी नही होता। "तो फिर" दो शब्द मैंने प्रश्नवाचक भाव से कहे। अपने शब्दों को आगे बढ़ाते हुए मैंने पुछा कि क्या जंगल छोड़ आउं या कसाई को दे दुं? इतने साल से जो हमें दुध पिला रही है उसे ! वो भी वापस ना लोटने के लिए