- बाइबिल कहता है कि जो ईसाई नहीं हैं वो वंचित (deprived) हैं। कोई गैर-ईसाई चाहे वो कितना भी नेक इंसान क्यों न हो वो नर्क का भागी होगा। उनके पास नर्क से बचने के लिए यही उपाय है कि ईसाई धर्म और पोप की सत्ता स्वीकार करे।
- क़ुरान कहता है कि एकमात्र मसीहा पैगंबर मोहम्मद साहब हैं। जो मुसलमान नहीं है वो काफिर है। उसे जीने का अधिकार नहीं। (बाक़ी क्या-क्या कहा गया है लिखना बेकार है)
- बाइबिल और क़ुरान से हज़ारों साल पुराने ऋग्वेद में कहा गया है "एकम सत् विप्रा: बहुधा वदंति" यानी सत्य एक है विद्वान अलग-अलग व्याख्या करते हैं।
- इस्लाम और ईसाईयत में नास्तिकता की कोई जगह नहीं है, ऐसे व्यक्ति की हत्या का आदेश है। लेकिन हिंदू धर्म इकलौता है जिसमें नास्तिक होने की छूट है।
- भागवत गीता में कृष्ण कहते हैं "सभी प्राणी चाहे वो छोटे हों या बड़े, मेरे लिए समान हैं। मैं किसी से घृणा नहीं करता और वो मुझे प्रिय हैं। जबकि इस्लाम और ईसाई धर्मों के पैगंबर कहते हैं कि "जो मेरे साथ नहीं है वो मेरा विरोधी है।"
फिर वो कौन लोग हैं जो रटते रहते हैं कि सारे धर्म एक समान हैं?