अशोक "प्रवृद्ध"'s Album: Wall Photos

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आकूतिं देवीं सुभगां पुरो दधे चित्तस्य माता सुहवा नो अस्तु ।
यामाशामेमि केवली सा मे अस्तु विदेयमेनां मनसि प्रविष्टाम् ।।
-अथर्ववेद 19/4/2
अर्थात -दिव्य गुण वाली, बड़े ऐश्वर्यवाली संकल्पशक्ति को आगे धरता हूँ । चित्तज्ञान की वह माता हमारे लिए सहज ही बुलाने योग्य हो । जिस अच्छी आशा की कामना करूँ, वह पूर्ण हो । मेरे लिए सेवनीय हो । मन में प्रवेश की हुई इस आशा को मैं पाऊँ ।