अशोक राम पटेल's Album: Wall Photos

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महाराज आज उत्सव का..आनंद का दिन है और आपकी आँखों में ये आँसू कैसे....??

इसपर राजा बोलें... ‘‘काका जिनके कारण मुझे सिंहासन मिला वे ही देखने को नहीं रहे । किस मुख से सिंहासनपर बैठूं ? यह सिंहासन मुझे चुभेगा....काका..!!

★ श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भारतीय इतिहास, हिंदवी स्वराज्य, सनातन हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण घटना है...!!

सिंहासनारूढ होने हेतु ,बत्तीस मन का सुवर्ण का सिंहासन तैयार करवाया गया । अमूल्य नवरत्न जितने कोष में थे, उनमें से खोजकर बहुमूल्य रत्न सिंहासन में जडवाए गये थे..।

रायरीका नाम ‘रायगढ़’ रखा गया । सिंहासन का स्थल गढ ही रखा गया । सप्तमहानदियों तथा मुख्य-मुख्य नदियों, समुद्र तथा नामांकित तीर्थो के जल लाए गए । सुवर्ण के कलश तथा पात्र बनाए गए । आठ कलश तथा आठ पात्रों से अष्टप्रधानों द्वारा राजा का अभिषेक करने का निश्चय कर, आज 6 जून सन् 1674 ‘शालिवाहन शके , ज्येष्ठ मास शुक्ल त्रयोदशी को शुभदिन देखकर शुभ मुहूर्त रखा गया था ।

साढे चार सहस्र राजाओं को निमंत्रण दिया गया । रायगडपर साढेचार सहस्र राजा एकत्रित हुए । गागाभट्ट पवित्र सप्तनदियों का जल लाए । शिवाजी महाराज ब्रह्ममुहूर्तपर उठे, स्नान किया, शिवाई माता का अभिषेक किया तथा जिजामाता का दर्शन किया । कौडियों की माला गले में पहनी, सिरपर टोप पहना, तुळजाभवानी माँ की दि हुई भवानी तलवार कमर में लटकाई तथा गडपर घूमने लगे ।

शिवाजी महाराज के सभागृह में आते ही साढे चार सहस्र राजाओंने मानवंदना की, बत्तीस मन का सिंहासन ऊपर रखा था तथा उसपर चढने हेतु तीन सीढियां थीं ।

पहली सीढीपर पैर रखते ही राजा का हृदय भर आया...राजा के नेत्रों में अश्रु भर आए तथा तत्क्षण उन्हें स्मरण हुआ...

‘राजे लाख मारे गए चलेगा; परंतु लाखों का संरक्षक को कुछ नहीं होना चाहिए , शिवा नाई कितने ही जन्म लेंगे, शिवा काशीद जन्म लेंगे परंतु प्रजा का राजा, शिवाजी राजा पुनः जन्म नहीं लेगा राजे!’, राजा के बांए नेत्र में आंसू आ गए ।

राजाने जैसे ही दूसरी सीढीपर पैर रखा उन्हें स्मरण हुआ ‘राजा आप कुशलपूर्वक विशाल गढ जाएं तथा पांच तोपों की सलामी दें । जब तक ये कान पांच तोपों की सलामी नहीं सुनते, तब तक यह बाजीप्रभू देशपांडे देह नहीं छोडेगा राजे !’ राजा के दाएं नेत्र से आंसू की धारा बह चली ।

राजा को तीसरी सीढीपर पैर रखते ही स्मरण हुआ ‘राजे पहले विवाह कोंडाणा का, और फिर मेरे रायबा का । बचकर, जीत कर आया राजे, तो बच्चे का विवाह करूंगा नहीं तो माता-पिता समझकर आप ही उसका विवाह कर दीजिए ।’ स्वराज्य के सूबेदार तान्हाजी मालुसरे को याद कर राजा के अश्रु निरंतर बहने लगे...!

साढेचार सहस्र राजाओं को कुछ न सूझे । आज आनंद का दिन, अनाथ हुए हिंदुओं को पिता मिलेगा, पवित्र मिट्टी को नायक मिलेगा, शिवाजी राजा होगें फिर राजा के नेत्रों में आंसू तभी वहां खडे एक वयोवृद्ध व्यक्ति को राजाने बुलाया...

मदारी काका आगे आए और पूछा, ‘राजा आज आनंद का दिन है और तू रोता है ?’

इसपर राजा बोलें, ‘‘काका जिनके कारण मुझे सिंहासन मिला वे ही देखने को नहीं रहे । किस मुख से सिंहासनपर बैठूं ? काका, यह सिंहासन मुझे चुभेगा । इस ऋण से मुक्त होने का कुछ तो मार्ग बताओ । उन स्वर्गवासियों का प्रतिनिधि समझकर आप ही कुछ मांग लें ।’’

मदारीकाका बोले, ‘‘राजा जो चले गए उन्होंने कुछ नहीं मांगा, मर मिटे पर स्वराज्य का भगवा ध्वज झूकने न दिया, उन्होंने कुछ नहीं माँगा तो मेरे जैसा क्या मांगेगा ?’

राजा बोले, ‘‘कुछ तो मांगो काका, जो मेरा ऋण उतर सके ।’’

इसपर मदारी काका ने कहा, ‘‘ऐसा कहता है ना शिवबा, तो इतना ही दे, इस बत्तीस मन के सिंहासन की चादर बदलने का काम राजा इस दीन को दें; और कुछ नहीं चाहिए ।’

आज के दिन से शिवाजी राजाने शिवराज्याभिषेक शक प्रारम्भ किया तथा शिवराई, शिवमुद्रा का चलन स्थापित किया..!!

स्वाभिमान की साक्षात मूर्ति शिवाजी राजा आज के दिन छत्रपति हुए । सारी अनाथ हुई जनता को राजा मिला । वंश-उपार्जित छत्र के नीचे नहीं, तो स्वयं के सैनिकों की सहायता से प्रजा द्वारा उठाए गए छत्र के नीचे शिवाजी राजा बैठे तथा स्वयं घोषित नहीं, लोक घोषित छत्रपति बने ।

कुछ लोग तारीख़ अनुसार यह राज्याभिषेक उत्सव मनाते है जो आज है कुछ तिथि के अनुसार..जो दो दिन पहले था, ये इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है, किल्ले रायगढ़ पर मुख्य उत्सव छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशजो की उपस्थिति में शिव राज्याभिषेक उत्सव समिति की ओर से आज मनाया जा रहा है...!!

जो शिवराज्य-सुराज्य स्थापित करने हेतु राजा छत्रपति हुए, उनका हिंदवी स्वराज्य और हिंदुपदपादशाही पुनः स्थापित हो हम सभी इसके लिये प्रयत्न करें...इन्ही शब्दों के साथ शिव छत्रपति के राज्याभिषेक की सभी को शुभ और मंगल कामनायें...!!

जय जय जय जय...जय भवानी.!
जय जय जय जय...जय शिवाजी..