अशोक राम पटेल's Album: Wall Photos

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मंदिर कोई सामान्य रचना नहीं है...!
यह राजाओं के वैभव का प्रतीक थे। दार्शनिकों के दर्शन का प्रतिबिंब थे। कामगारों कि आश्चर्यजनक प्रतिभा के प्रतीक थे...!

मंदिर ! यह बताते है हमारा प्राचीन समाज कितना व्यवस्थित था। वर्णिक स्तरो में विभाजित समाज अपने अपने कर्तव्यों के प्रति कितना सचेत था यह स्प्ष्ट दिखता है।
यह समाज वह्यरुप से आप देखते है तो अलग अलग दिखता है जैसे ही आप थोड़ा गहराई में गये अभिन्न सूत्र दिखता है जो इतना व्यवस्थित है जिसको छिन्न भिन्न नहीं किया जा सकता।

एक पौराणिक कथा ! समुद्र मंथन है। जिससे अमृत विष निकलता है। भारतीय संगीत के प्रेणता भरत मुनि का प्रथम नाट्य मंचन समुद्र मंथन है। भारत के सभी प्रसिद्ध मंदिर में यह स्थापत्यकला के रूप में मिल जायेगी। फिर इसी समुद्र मंथन से निकले अमृत से कुंभ -महाकुंभ मेले का आयोजन भारत के चारों कोने प्रयागराज , हरिद्वार , उज्जैन , नासिक में होता है। जिसमें करोड़ो लोग एकत्रित होते है।
एक पौराणिक कथा ने किस तरह से समाज के विभिन्न आयामों को जोड़ दिया।
वेद , उपनिषद , गीता , रामायण , महाभारत में जितने दार्शनिक विचार है वह सभी स्थापत्यकला के रूप में मंदिर में प्रतिष्ठित किये गये है।
धर्म अन्वेषक ने विचार रखे , राज्यसत्ता ने स्वीकार किया , कलाकारों , कामगारों ने कार्यरूप दिया। तब एक आश्चर्यजनक मंदिर का निर्माण हुआ।
यह एक बहुत व्यवस्थित प्रक्रिया है जो यह दर्शाती है। उस काल के समाज कि कार्यपद्धति क्या थी और अपने कर्तव्यों के प्रति कितने सचेत थे।

मंदिर को मात्र धर्म कि रचना समझ लेना ! भूल होगी। इन मंदिरों को जिन्होंने बनाया वह लोग सभ्यता संस्कृति कि दृष्टि से बहुत ऊंचाई पर थे। यह वह समाज था जिसमें नवीनता के साथ निरंतरता भी थी।

तो हम मंदिरों केवल पर गर्व ही न करें! यह भी सीखें किस तरह किसी महान रचना क्यों न हो वह धर्म हो या राष्ट्र हो। समाज के सभी वर्ग अपना अपना योगदान देते है...