उस कुरुक्षेत्र में खड़े हो कर इस सृष्टि के एकमात्र पूर्ण पुरुष भगवान #श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुल मिला कर यही तो कहा था, कि तुम अपना कर्म करो! तुम न किसी को बचा सकते हो, न ही किसी को मार सकते हो। तुमको न किसी और के आदि-अन्त का ज्ञान है, न स्वयं का... तुम बस एक माध्यम हो, और नियति को तुमसे जो कराना है वह करा ही लेगी। इसलिए माया छोड़ो, मृत्यु का भय भी छोड़ो, मुक्त हो कर अपना कर्म करो...
हमारे लोक ने जीवन की तुलना दीये से की थी। दीपक में मनुष्य कई घण्टों तक जलने भर का तेल भरता है। दीपक उतने देर तक जलता भी है, किन्तु यदि बीच में हवा तेज बह गई तो दीपक तेल रहते हुए भी बुझ सकता है। जीवन भी वैसा ही है। हमें पता है कि जीवन के दीपक में सौ वर्षों तक जीने भर का तेल है, लेकिन हम नहीं जानते कि हवा कब तेज हो जाएगी। हवा की नियति केवल वह नियंता जानता है। लेकिन आज के लोग इस बात को भूल गए है, लेकिन मेरे दादा परदादा के समय के लोग जो अपने जीवन में कभी रामचरितमानस देखा भी नहीं, उन्हें भी इतना अवश्य याद होता था कि होइहें वही जो राम रचि राखा।