नौजवानों, जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके,
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर,
हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर,
वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर,
गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर,
तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!
कोई माता की उमीदों पे न डाले पानी,
ज़िंदगी भर को हमें भेज दे काले पानी,
मुंह में जल्लाद, हुए जाते हैं छाले पानी,
आबे-खंजर को पिला करके दुआ ले पानी,
भर न क्यों पाए हम, इस उम्र के पैमाने को!
हाथ जिनमें हो जुनूँ , कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है ,
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ!
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?
अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है...!!
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
आज क्रांतिकारी, शायर, लेखक, इतिहासकार, साहित्यकार पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का 123 वां जन्मदिवस है. बिस्मिल ने महज 11 साल की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था. उनका जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में हुआ था. बचपन में राम प्रसाद बिस्मिल आर्यसमाज से प्रेरित थे और उसके बाद वे देश की आजादी के लिए काम करने लगे...!!
बिस्मिल मातृवेदी संस्था से भी जुड़े थे. इस संस्था में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए काफी हथियार एकत्रित किया, लेकिन अंग्रेजी सेना को इसकी जानकारी मिल गई. अंग्रेजों ने हमला बोलकर काफी हथियार बरामद कर लिए. इस घटना को ही मैनपुरी षड़यंत्र के नाम से भी जाना जाता है. काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया...!!
काकोरी कांड में शामिल होने की वजह से अंग्रेजों ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को फांसी के फंदे पर लटका दिया था.....!!
पंडित जी से मिलने गोरखपुर जेल पहुंचीं उनकी मां ने डबडबाई आंखें देखकर उनसे पूछा था, ‘तुझे रोकर ही फांसी चढ़ना था तो क्रांति की राह क्यों चुनी?
बिस्मिल कह उठे मां ये तो खुशी के आंसू है क्योंकि मेरा जीवन माँ भारती के काम आ रहा है..!!
पंडित जी आज आपके अवतरण दिवस पर आपकी लिखी, गायी हुई पंक्तियों के साथ...हम सभी की तरफ से आपके पूज्य चरणों में शत शत नमन वंदन पहुँचे....